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________________ प्रथमपरिवेद. १० थी पमिलेहवं. पली खमासमण दक्ष, इनाकारी जगवन् पसाय करी पमिलेदणा पमिलेदावोजी. एम कही वडीलर्नु अण पडिलेा एक वस्त्र उ त्तरासन पमिलेदवू. पनी खमा० श्बा जपधि मुहपत्ति पमिलेहुं? श्वं कही मुहपत्ति पमिलेहवी पगी खमा०श्चानपधि संदिसाढुं? श्वं खमा० इना उपधि पमिलेहुं ? श्वं कहीने पूर्वे पमिले हतां बाकी रदेख उत्तरासण,मात्रु करवा जवानुं वस्त्र अने रात्री पोसह करवो दोय तो कामली विगेरे २५ पचीस बोलथी पमिलेहवा. पनी एक जणे डंडास ण जाची लेवं तेने पडिलेही, इरि यावही पडिक्कमीने काजोलेवो.काजो'शुभएटले तपासीत्यांज स्थापनाचार्यनी सन्मुख ननडक बेसीने शरियावही पडिकमवा. परी काजो यथा योग्य स्थानके अणुजाणद जस्सग्गो कहीने परग्ववो. परव्या परी त्रणवार वोसिरे क देवू. पनी मूल स्थानके आवीने सौ साथे देव वांदे अने सकाय करे. १ काजामां सचित्त एकेंद्री नीकले तो गुरु पासे आलोयण लेवी. त्रस जीव नीकले तो यतना करवी. .
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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