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________________ VU प्रथमपरिछेद. " आयरं न मुत्तवं "ते सांगली शिष्य तदत्ति कहे ॥पनी जमणो हाथ चवला अथवा कटा सणा ऊपर थापी एक नवकार गणी " सामा यवयजुत्तो' कहीने थापेली थापना दोय तो तेनी सामो जमणो दाथ राखी एक नवकार ग णी करे॥ए देवसि प्रतिक्रमणनो विधि सा मान्य पणे कह्यो, बाकी अंतर्विधि वमेराथी स मजवो ॥ इति ॥१०॥ ॥ अथ राइप्रतिक्रमणविधि ॥ ॥प्रथम पूर्वली रीतें सामायिक लेवू तेज्यां सुधीत्रण नवकार गणी तिहां सुधी सर्व वि घि जाणवोपरी खमासमण देई नाकारण संदिसह नगवन् कुसुमिण उसुमिण राश्नवह णि पायबित्तविसोहण कानस्सग्ग करूं. श्वं करेमि कानस्सग्ग "अन्नब उससिएणं ,, कही चार लोगस्स अथवा शोलनवकारनो कामस्सग्ग करी पारीने प्रगट लोगस्स क देवो ॥ पठी खमासमण देई इलाकारेण सं दिसद नगवन् चैत्यवंदन जयवीयराय सुधी, कह ॥ परी पूर्वोक्त देवसीनी रीतें नगवान्
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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