SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ rug प्रथमपरिद. न स्त्री समारदावानी व्रण थोयो कहे॥ पीन मन्त्राणं कही. वमासमा आपी इचाकारेण सं हिम्मत नगवन् स्तवन नj. एम कही नमोऽर्ह ना कह! स्तवन कहे ॥ पठी वरकनक कही पूर्वली गीत चार खमासमणपूर्वक नगवान् प्राचार्य, नपाध्याय, सर्वसाधु, ए चारने वांदी जमाणो हाथ नपधि कपर थापी अट्ठाइजेसु मुनिवंदन कहेवू ॥ पठी खमासमण आपीश्वा कागा मंदिसह नगवन् देवसिय पायचित्तवि माह कानम्सग्ग करूं, इनं देवसिय पाय वित्त विमोहण करेमि कानस्सग्गं अन्ननस मिर कन्दी चार लोगस्स अथवा शोल नव कारना कानम्मग्ग करवो, ते पारी प्रगट लोग्ग म्म कहीन नीचे वशी खमासमण दे इचा कारण मदिसह जगवन सजाय संदिसाहे. वं कढी वली वीजें खमासमण देई श्वाकारण संदिसह नगवन सजाय नपुं एम सजायनो प्रादेश मागी एक नवकार गणी सजाय कदेवी ॥ पठी एक नवकार गणी, खमासमण देई ३ वाकारण मंदिसह नगवन् पुस्करक कम्मरक
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy