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________________ प्रथमपरिछेद. ॥२॥ सूरज कुंम सोहामणो, कविड जद अ निराम ॥ नानिराया कुलमंडणो, जिनवर करूं प्रणाम ॥ ३ ॥ इति चैत्य० ॥ ४॥ ॥अथ श्रीपरमात्मानुं चैत्यवंदन ॥ ॥ परमेसर परमातमा, पावन परमिह॥ जय जगगुरु देवाधिदेव, नयणे में दिछ॥१॥ अचल अकल अविकार सार, करुणा रससिं धु ॥ जगती जन आधार एक, निःकारण बंधु ॥॥ गुण अनंत प्रजु ताहारा ए, किमही क ह्या न जाय ॥राम प्रज्जु जिन ध्यानथी, चिदा नंद सुख थाय ॥ ३ ॥इति ॥ ५॥ __ अथ सीमंधर जिनस्तवनं ॥ ॥सुणो चंदाजी, सीमंधर परमातम पासे जावजो ॥ मुज विनतमी, प्रेमधरीने एणि परे तुमें संनलावजो॥ ए आंकणी ॥ जे त्रण्यनुव ननो नायक ॥ जस चोसह इंवें पायक ग॥ नाण दरिसण जेहनें खायक ॥ सुणो॥२॥ जेनी कंचन वरणी काया ॥जस धोरीखंबन पाया ॥ पुंडरीगिणि नगरीनो राया ॥ सु णो० ॥ ॥ बार पर्षदामिहिं बिराजे ॥जस
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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