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________________ प्रथमपरिच्छेद . ८१ हे ॥ २॥ चनद सुपन निर्मल लही, सत्यकी रा ी मात ॥ कुयुं पर जिन अंतरे, श्री सीमंधर जात ॥ ३ ॥ अनुक्रमे प्रभु जनमीया, वली यौवन पावे ॥ मात पिता दरखे करी, रुकमिणी परावे ॥ ४ ॥ जोगवी सुख संसारनां, संजम मन लावे ॥ मुनिसुव्रत नमी अंतरे, दीक्षा प्र त्रु पावे ॥ ५ ॥ घाती कर्मनो दय करी, पाम्या केवल ना ॥ रिवन लंबने शोजता, सर्व ना वना जाए ||६|| चौरासी जस गणधरा, मुनि वर एक शो कोम ॥ त्रण भुवनमां जोयतां, न दीं कोई एहनी जोम ॥ ७ ॥ दस लाख कह्या केवली, प्रभुजीनो परिवार || एक समय त्रण कालना, जाणे सर्व विचार ॥ ८ ॥ उदय पेढाल जिनांतरे ए, याशे जिनवर सि-६ ॥ जश विज य गुरु प्रणमतां, शुभ वांबित फल लीध ॥ ॥ ॥ अथ श्री सिदाचलजी नुंचैत्यवंदन ॥ ॥ विमल केवल ज्ञानकमला, कलित त्रिभु वन हितकरम् ॥ सुरराजसंस्तुतचरणपंकज, नमो आदिजिनेश्वरम् ॥ १ ॥ विमलगिरिवर शृंगमंडण, प्रवरगुणगण भूधरम् ॥ सुर असुर ११
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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