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________________ प्रथमपरिछंद. JU वर्जगं. उसास निरंजणा लोए ॥ ३ ॥ जइ मे हुआ प्रमार्ज. इमस्स देहस्सिमाइ रयणी ॥ प्रहार मुवदि देदं, सवं तिविदेणं वोसिरिअं ॥ ४ ॥ चत्तारि मंगलं ॥ अरिहंता मंगलं ॥ सि ६ मंगलं ॥ साहु मंगलं ॥ केवल्लिपन्नत्तो ध म्मो मंगलं ॥ ० ॥ चत्तारि लोगुत्तमा ॥ रिहंता लोगुत्तमा । सिधा लोगुत्तमा ॥ साहु लोगुत्तमा । केवल पन्नत्तो धम्मो लोगुत्तमो ॥ ६ ॥ चत्तारि सरणं पवामि ॥ अरिहंते स रणं पवामि ॥ सिदे सरणं पवामि ॥ साहु सरणं पवामि ॥ केवलिपन्नत्तं धम्मं सरणं पवामि ॥ ७ ॥ पाणाइवाय मलि, चोरिक्कं महुणं विमुचं ॥ कोदं माणं मायं, लोनं पिऊं तदा दोसं ॥ ८ ॥ कलहं नरकाणं पेसु न रई रई समात्तं ॥ परपरिवायं माया, मोमं मिचत्तसनं च ॥ ए ॥ वोसिरिस इमाई मुस्क मग्ग संसग्ग विग्धजुआई ॥ डुग्गर नि बंधणाई प्रहारस पावठाणाई ॥ १० ॥ एगोदं नचि मे कोइ नाढ मन्नस्स कस्सई ॥ एवं प्र दी मासों, अप्पाण व सासई ॥ ११ ॥ ए
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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