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________________ ६॥ प्रथमपरिद. बारमे अतिथिसंविनागव्रत विषयि अनेरोजे कोई अतिचार पद दिवसमांदि० ॥१२॥ ___ संलेषणातणा पांच अतिचार ॥ इहलोए परलोए ॥ इहलोगासंसप्पउँगे, परलोगासं पप्पउँगे, जीवियासंसप्पउंगे, मरणासंसप्पउंगे कामनोगासंसप्पउंगे ॥इहलोके धर्मना प्रना वलगें राजादि, सुख,सौनाग्य,परिवार, वांग्यां परलोकें देव, देवें, विद्याधर, चक्रवर्ति तणी पदवी वांगी, सुख आवे जीवितव्य वाव्युं, उख आवे मरण वांग्युं, कामनोग तणीवांग कीधी ॥संलेषणाव्रत विषयि अनेरो जे कोई अति चार पद दिवसमांदि०॥ १३ ॥ तपाचार बार नेद ब बाह्य, अभ्यंतर ॥ अणसण मूणोयरित्रा०॥णसण नणीजप वास विशेष पर्वतिथें बती शक्तिये कीधो नहीं, कणोदरीव्रत ते कोलिया पांच सातकणारह्या नहीं, दत्तिसंदेप ते ऽव्य नणी सर्व वस्तुनो संदेप कीधो नहीं, रसत्याग तथा विगयत्याग न कीधो, कायक्वेश लोचादिक कष्ट करया न ही, संलीनता अंगोपांग संकोची राख्या नहीं
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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