SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कौरव पाण्डवों का पुनर्मिलन तथा अभिमन्यु-जन्म यह पत्र पढ़ कर गुरु द्रोण से नहीं रहा गया और वे पत्र लेकर दुर्योधन व कर्ण के समीप गये। कर्ण तो यह समाचार सुनकर अति प्रसन्न हुआ पर दुर्योधन इस समाचार से बज्राहत सा स्तब्ध रह गया। तब द्रोणाचार्य जाकर पांडवों से मिले। सभी पांडवों ने नतमस्तक होकर गुरु द्रोण को प्रणाम किया। युद्ध रोक दिया गया। फिर गांगेय, कर्ण व कौरव गण भी पांडवों के पास जा पहुँचे व वे सभी परस्पर गले मिले इस घटना से कौरव अपने आपको काफी लज्जित महसूस कर रहे थे। फिर सभी लोग कुम्हार के घर जाकर माता कुन्ती से मिले। कुन्ती ने कौरवों को उनके जघन्य कृत्य के लिए धिक्कारा, परन्तु कौरवों के क्षमा मांगने पर कुन्ती ने उन्हें माफ कर दिया। राजा द्रुपद यह जानकर अति प्रसन्न हुए कि वे ब्राह्मण वेश में पाण्डव ही हैं। इसलिये उन्होंने शीघ्र ही अर्जुन के साथ द्रौपदी व विद्याधर की पुत्री का विवाह सम्पन्न कर दिया। फिर सभी पांडव व कौरव इकट्ठे होकर माँ कुन्ती, गांगेय व द्रोणाचार्य के साथ हस्तिनापुर आ गये। हस्तिनापुर पहुँचने पर वहां की प्रजा ने खुशी-खुशी पांडवों का आत्मीय स्वागत किया। हस्तिनापुर आने पर कौरवों व पांडवों ने पुनः राज्य को आधा-आधा बांट लिया व वे सभी सुखपूर्वक वहां राज्य करने लगे। पांडवों ने अपने राज्य के पांच भाग कर प्रत्येक भाई को एक-एक भाग दे दिया। युधिष्ठिर इन्द्रप्रस्थ में, भीम नित्यपथ में, अर्जुन सुनपत में, नकुल जलपथ में व सहदेव वणिकपथ में रहकर अपने-अपने राज्यों की बागडोर संभालने लगे। पाण्डवों का हृदय विशाल था। वे सभी युधिष्ठिर की आज्ञा का पालन करते थे। भीष्म पितामह को सभी पांडव अत्यन्त श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे। एक बार श्रीकृष्ण ने अर्जुन को क्रीड़ा हेतु गिरनार पर आमंत्रित किया। उनके आमंत्रण पर अर्जुन गिरनार पहुँच संक्षिप्त जैन महाभारत - 95
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy