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________________ लाक्षाग्रह का जलना व पाण्डवों का बचकर निकलना इधर हस्तिनापुर में एक दिन राज्यसभा में दुर्योधन ने ईर्ष्यावश कहा कि हम लोग 100 भाई है व पांडव केवल पांच। तब वे आधे राज्य.पर अधिकार कैसे रख सकते हैं। उचित तो यह है कि संपूर्ण राज्य के 105 भाग करके सभी को बराबर का हिस्सा दे देना चाहिए। इस प्रकार दुर्योधन परस्पर के प्रेमसूत्र को विच्छिन्न करने पर तुल गया। दुर्योधन की इस विषाक्त युक्ति को सुनकर सभासद स्तंभित रह गये। तब पांडव जो विवेकशील, बुद्धिमान व धैर्यशाली थे, शांत रहे। पर भीम से दुर्योधन की इस गर्वोक्ति को सुनकर रहा नहीं गया। वह बोले-हमारे रहते ये निरूपाय दीन कौरव कुछ नहीं कर सकते। तभी भीम अग्रज युधिष्ठर की ओर मुखातिब होकर बोले-'हे महाराज यदि आप आज्ञा दें तो मैं इन दुष्ट कौरवों को उठाकर समुद्र में प्रवाहित कर आऊं। दुर्योधन ने ऐसे वचन कहने का दुःसाहस कैसे किया। तब युधिष्ठिर ने अपनी मधुर वाणी से भीम को शांत कर दिया। तब अर्जुन ने क्रोधावेश में कहा कि कि जिस प्रकार सहस्त्रों कौओं की भीड़ को भगाने के लिए एक पाषाण का टुकड़ा पर्याप्त होता है। उसी प्रकार इन सौ कौरवों के लिए मेरा एक बाण ही पर्याप्त होगा। तब पुनः युधिष्ठिर ने शांत वचनों से अर्जुन को भी शांत कर दिया। तभी नकुल बोले कि पतंगों के विनाश का जब समय आ जाता है तब उनके पंख निकल आते हैं। जिससे वे स्वयं अग्नि के समीप आ जाते हैं और उसमें आहुत होकर भस्म हो जाते हैं। सहदेव ने भी अपने कुठार को संभालते हुए युधिष्ठिर से कहा; यदि आप आज्ञा दें तो मैं इसी कुठार से इन कौरवों के शीश काटकर दिकपालों को बलि चढ़ा दूं। तब युधिष्ठिर ने सौम्य व मधुर वचनों से इन्हें भी शांत कर दिया। दुर्योधन सदैव पांडवों को अपमानित करने की चिंता में 80 जित जैन मलभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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