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________________ अपनी गोद में ले लिया तथा उस बालक के उपर छत्र दिया। ऐसा कर वसुदेव ने उस बालक को छत्र सहित बलभद्र को दे दिया। उस समय पिछले सात दिन से घनघोर बर्षा हो रही थी। फिर भी वे दोनों देवकी पुत्र को लेकर उस गहन अंधकार वाली रात्रि में महलों से बाहर निकल पड़े। उस समय कंस के सुभट घोर निद्रा में मग्न थे। जब वे दोनों शहर के मुख्य द्वार गोपुर पहुंचे तो वहां के कपाट बंद थे। परन्तु वे कपाट उस बालक के चरणों के स्पर्श मात्र से खल गये व उनमें निकलने योग्य संधि हो गईं। जब वे दोनों उस संधि से बालक को लेकर निकलने ही वाले थे; कि तभी आहट सुनकर गोपुर के ऊपर बंदी बने उग्रसेन ने कहा कि कौन किबाड़ खोल रहा है। तब बलभद्र ने उग्रसेन से कहा कि आप चुप बैठिये। यही बालक आपको शीघ्र ही बंधन से मुक्त करेगा। यह सुनकर उग्रसेन ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा कि तू निर्विघ्न रूप से चिरकाल तक जीवित रहे। तब बलदेव व वसुदेव यह कहकर कि हे पूज्य इस रहस्य की रक्षा की जाये। तब उग्रसेन ने पुनः कहा कि यह हमारे भाई की पुत्री का पुत्र अपने शत्रु से अज्ञात रहकर वृद्धि को प्राप्त हो। जब वे दोनों उस पुत्र को लेकर गोपुर से बाहर निकले, उस समय एक बैल आगे-आगे वसुदेव व बलदेव को मार्ग दिखलाता हुआ बड़े बेग से जा रहा था। जब वे यमुना तट पर पहुंचे तो उस समय यमुना का जलस्तर काफी बढ़ा हुआ था। परन्तु उस बालक के प्रभाव से यमुना का तेज प्रवाह खंडित हो गया, जिससे वे दोनों यमुना को आसानी से पार कर शीघ्र ही नंद गोपाल के घर की ओर जाने लगे कि तभी नंद गोपाल उन्हें उनकी ओर आते दिखाई दिये। नंद गोपाल भी एक नवजात बालिका को लेकर यमुना नदी की ओर जा रहे थे। पूछने पर नंदगोपाल/सुनंद ने उन दोनों को बतलाया कि पुत्र की जगह पुत्री होने के कारण मैं इस पुत्री को भूत-पिशाचों को देने जा रहा हूँ। यह सुनकर बलदेव व वसुदेव ने अपने पुत्र को नंदगोपाल को सौंपकर उनसे पुत्री ले ली। नंदगोपाल वंश परम्परा से वसुदेव के अति विश्वासपात्र थे। अतः उन दोनों ने सुनंद नाम के 64. संलिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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