SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गया व कहा कि जिस प्रकार पारस पत्थर के स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है, उसी प्रकार इस स्तूप रूपी द्रोणाचार्य के संयोग से ही मुझे यह धर्नुविद्या प्राप्त हुई है। इसी की मैं आराधना करता हूँ। तब अर्जुन ने उस बालक से कहा कि हे शवरोत्तम! तुम धन्य हो, तुम्हारा कार्य महान है। तुम गुणवान हो, गुरुभक्त परायण हो व अग्रणी ज्ञानीजनों को भी मान्य हो। ऐसा कहकर अर्जुन वापिस हो गये। अर्जुन ने तुरंत इस घटना का संपूर्ण विवरण गुरु द्रोणाचार्य को कह सुनाया व कहा कि वह बुद्धिहीन भील आपको गुरु मानकर सदैव ही निरपराध मूक प्राणियों पर प्रहार करता रहता है। वह अति बलवान किन्तु निVषता से ओतप्रोत है। अर्जुन के ये वचन सुनकर द्रोणाचार्य को गहन विषाद हुआ तथा उसी क्षण वे अर्जुन को साथ लेकर उस भील बालक के निवास की ओर चल दिये। वहां पहुँचने पर उस भील बालक ने उन दोनों को उत्तम आसन पर बैठाकर यथोचित आदर सत्कार किया; पर वह भील बालक यह न जान सका कि यही द्रोणाचार्य हैं। तभी द्रोणाचार्य ने उस बालक से पूछ लिया कि आपके गुरू कौन हैं? तब वह बोला-मेरे गुरू अनेक रणकलाओं के ज्ञाता, प्रसिद्ध धनुर्धर एवं जगतबंध्य महापुरुष द्रोणाचार्य हैं। न जाने वह कौन सा शुभ अवसर आयेगा; जब मैं उनके प्रत्यक्ष स्वरूप का दर्शन कर अपने को कृत्य-कृत्य समझूगा। यदि मैं गुरु की संप्रति प्रत्यक्ष देख पाऊं तो उनके चरणों पर अपने आपको न्यौछावर कर दूंगा। तभी गुरु द्रोण बोले- मैं ही द्रोणाचार्य हूँ। तब उस भील पुत्र के हर्ष का ठिकाना नहीं रहा। उसका मुखमंडल हर्ष से दमक उठा व उसने उन्हें साष्टांग नमस्कार किया। उसके तन मन की सुधी जाती रही। जैसे उसे अनमोल रत्न मिल गया हो। उसने बार-बार गुरु चरणों में अपना मस्तक रख अपनी भावनायें प्रकट की। __ तब गुरु द्रोण बोले- 'तुम्हारे सदृश्य एकनिष्ठ शिष्य मैंने भूतल पर नहीं देखा है। मैं तुमसे एक याचना करने आया है। यह सुनकर वह भील बालक स्तब्ध रह गया। बोला-मुझ संक्षिप्त जैन महाभारत 61
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy