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________________ वहीं राजा भोजकबृष्टि ने भी अपनी पुत्री गांधारी का विवाह राजा व्यास के ज्येष्ठ पुत्र धृतराष्ट्र से कर दिया। उनके लघु पुत्र बिदुर का विवाह राजा देवक की पुत्री कुमुवती से हुआ। एक रात्रि में कुन्ती ने अंतिम प्रहार के स्वप्न में मदमस्त गजराज, कल्लोल करते समुद्र, चंद्रमा व कल्पवृक्ष को देखा; तब राजकुमार पांडु ने स्वप्न सुनकर कुन्ती को बताया कि आपके गर्भ में आया बालक तेजस्वी, गंभीर, संसार को आनंदित करने वाला या याचकों की मनाकामनाओं को पूर्ण करने वाला होगा। उसके चार लघु भ्राता भी होंगे। यह सुनकर हर्ष से फूली कुन्ती आनंदमग्न हो गई। कालावधि व्यतीत होने पर कुन्ती ने अच्युत स्वर्ग से चयकर आये एक अति सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। इस खुशी में नगर में चारों ओर आनंद छा गया। याचकों को मनवांछित दान देकर, विद्वानों व श्रेष्ठियों का सत्कार कर उन्हें भी बहुमूल्य वस्तुयें प्रदान की गईं। नामकरण संस्कार के दिन इस पुत्र का नाम युधिष्ठिर रखा गया। युधिष्ठिर बड़े होकर कला, शील, कांति, बल एवं ज्ञान सभी में प्रवीण हो गये थे; अतः प्रजा इन्हें स्नेह से धर्मराज भी कहने लगी थी। इसके पश्चात् कुन्ती ने दूसरे पुत्र भीम को जन्म दिया। ___ भीम सर्वतोमुखी विद्या के धनी व प्रचंड बलशाली थे। बुद्धि, रुप, गुण एवं साहस की वह प्रतिमूर्ति थे। स्वप्नावस्था में प्रचंड वायु प्रवाह में कल्पवृक्ष के रूप में उसे गर्भ में आते माता कुन्ती ने देखा था; इसलिए भीम को 'मरुतस्य' भी कहते हैं। तत्पश्चात कुन्ती ने तृतीय पुत्र को जन्म दिया। इस पुत्र का नाम अग्निपुत्र/ धनंजय रखा गया। इस पुत्र का तेज, शौर्य व सौंदर्य अतुलनीय था। उसके शरीर की कांति अर्जुन अर्थात् रुपा/चांदी के समान स्वच्छ थी, इसलिए इसका नाम अर्जुन भी था। माता कुन्ती ने स्वप्न में इन्द्र को देखकर अर्जुन को प्राप्त किया था। इसीलिए अर्जुन को इन्द्रसून या सत्पुरुष भी कहते हैं। तत्पश्चात कुन्ती की बहन माद्री ने भी होनहार, अति सुन्दर व स्वस्थ दो सुन्दर 52 - संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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