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________________ फैल गया व कालान्तर में कुन्ती ने एक तेजस्वी व सुन्दर शिशु को जन्म दिया। यह चर्चा शीघ्र ही संपूर्ण नगर में फैल गई, पर राजदंड के भय से कोई कुछ कह न सका। राजा अंधकबृष्टि ने मंत्रियों से परामर्श कर इस पुत्र का नाम कर्ण रखा व उसे बहुमूल्य रत्नजड़ित कवच कुंडल एवं वस्त्राभूषणों से सुसज्जित कर एक बहुमूल्य मंजूषा में रखकर यमुना नदी के प्रवाह में छोड़ दिया। यमुना नदी के तट पर ही चंपापुरी नाम क्री नगरी थी। इस नगरी का राजा भानु था। राधा उसकी प्राणवल्लभा थी। पर इन दोनों के कोई संतान नहीं थी; अतः वे सदा संतापित रहते थे। प्रारब्धवश कुन्ती पुत्र कर्ण की मंजूषा इसी नगरी के तट पर आ लगी। यह मंजूषा नरेश को मिली। इस मंजूषा को खोलकर व उस मंजूषा में नवजात बालक को पाकर वह अत्यन्त प्रफुल्लित हुआ। एक निमित्त ज्ञानी के पूर्व में ही बतलाये अनुसार राजा उस बालक को मंजूषा सहित अपने महलों में ले गया व उस नवजात बालक को ले जाकर अपनी महारानी की गोद में डाल दिया। उस नवागत पुत्र को ग्रहण करते समय महारानी अपना कान खुजला रही थी; अतः यहां भी उस बालक का नाम कर्ण रखा गया। पुराण में ऐसा भी उल्लेख है कि कुन्ती के बालक के जन्म का समाचार कानोंकान संपूर्ण नगर में फैल गया था, इसलिए इस बालक का नाम कर्ण रखा गया था। यहां यह बात विशेष ध्यान देने की है, कि अंधकबृष्टि चंपा नगर/शौरीपुर का राजा था; वहीं भानु चंपापुरी का शासक था। चूंकि कर्ण का लालन-पालन चंपापुरी नरेश भानु ने किया था; अतः कर्ण को भानुपुत्र अर्थात् सूर्य पुत्र भी कहते हैं। नरेश अंधकबृष्टि कुन्ती की घटना से क्षुब्ध थे, किन्तु उन्होंने इस समस्या के हल के लिए अपने नीति निपुण मंत्रियों एवं पुत्रों के साथ विचार विमर्श के बाद यह निर्णय लिया कि कुन्ती का विवाह पांडु के साथ ही कर दिया जावे; क्योंकि कुन्ती से अब कोई और विवाह नहीं करेगा। अत: अंधकबृष्टि ने तमाम भेंट उपहारों के साथ एक चतुर 50 - संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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