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________________ की पेटी में मिला था। बड़ा होने पर वह बालक बड़ा उदंड हो गया, बुरी आदतें उसमें समा गईं; जिससे परेशान होकर उस कलारन ने कंस को घर से निकाल दिया। कंस यहां-वहां भटकता हुआ शौरीपुर नगर पहुँच गया व वहां जाकर राजा वसुदेव का सेवक बन गया। यहीं वसुदेव ने उसे अपना शिष्य बनाकर उसे शस्त्र विद्या में पारंगत किया व उसे एक महान योद्धा बना दिया। कभी वसुदेव अपने शिष्यों कंस आदि के साथ राजगृह नगर गये। वहां जरासंध ने घोषणा करवाई थी कि जो भी व्यक्ति/राजा सुरम्य देश के पोदनपुर के स्वामी सिंहरथ को युद्ध में परास्त कर उसे जीवित पकड़कर लावेगा, उसे इच्छित देश भेंट में देने के साथ अपनी पुत्री जीवद्धसा को भी विवाह दूंगा। यह सुनकर सिंहरथ पर सवार होकर कंस के साथ वसुदेव राजा सिंहरथ को पकड़ने सेना के साथ चल दिये। सिंहरथ के सामने आने पर वसुदेव ने वाणों से सिंहों की रस्सी काट दी। जिससे वे स्वच्छंद होकर राजा सिंहरथ की ओर भागे। इस दृश्य को देखकर सिंहरथ भयभीत हो गया। तभी कंस ने गुरु आज्ञा से सिंहरथ को बांध लिया। तब वसुदेव ने कंस की चतुराई को देखकर व खुश होकर कंस से वर मांगने को कहा; पर कंस ने उस वर को कभी आगे ले लेने को कहा। वे दोनों सिंहरथ को लेकर राजगृह पहुँचे तथा उसे जरासंध के हवाले कर दिया। जरासंध यह देखकर अति प्रसन्न हो गया व अपनी पुत्री जीवद्धसा का विवाह वसुदेव से करना चाहा; पर वसुदेव के यह कहने पर कि कंस ने सिंहरथ को पकड़ा है; अतः जीवद्धसा का विवाह कंस से कर दिया जाए। पर विवाह के पूर्व जरासंध के कुल पूछने पर कंस ने कहा कि उसकी माँ मंजोदरी कौशांबी नगरी में कलारिन है। तब कलारिन को बुलवाया गया व कंस की मंजूसा में रखे पत्र को पहचान मानकर व कलारिन के यह कहने पर कि यह पुत्र मुझे इसी मंजूसा में रखा यमुना में मिला था, कंस को उग्रसेन व पदमावती का पुत्र मानकर जरासंध ने अपनी पुत्री जीवद्यसा 44. संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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