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________________ की ओर दौड़ा। पर वसुदेव निडर होकर उसके बाहरी दांतों को झूला बनाकर उन पर झूलने लगे तथा बाद में उस हाथी पर चढ़ गये। तभी वहां आकाशमार्ग से जा रहे दो विद्याधर कुमार हाथी से उठाकर वसुदेव का हरण कर ले गये व उसे विजयार्ध पर्वत के कुंजरावर्त नगर के बाहर उपवन में छोड़ दिया। तब वे विद्याधर वसुदेव से बोले कि आपको यहां के नरेश अशनिवेग की आज्ञा से यहां लाया गया है। तुम उन्हें अपना श्वसुर समझो। तब मंगलाचार पूर्वक वसुदेव का नगर प्रवेश कराया गया व नरेश पुत्री श्यामा से उनका विवाह कर दिया गया। एक दिन श्यामा ने 17 तार वाली वीणा के राग छेड़ें। वसुदेव उसके वीणा बादन को सुनकर अति प्रसन्न हो गये व उन्होंने श्यामा से वर मांगने को कहा। तब श्यामा ने वसुदेव से कभी जुदा न होने का वर मांगा व कहा कि मेरा शत्रु अंगारक अवसर पाकर तुम्हें हर ले जा सकता है। उसी ने मेरे पिता का राज्य भी छीन लिया है। आप चाहें तो ये राज्य वापिस दिला सकते हैं, क्योंकि ऐसा एक मुनिराज ने बतलाया था। श्यामा से ये घटनायें सुनकर वसुदेव ने श्यामा की बात को स्वीकार कर लिया। पर एक दिन जब संभोग क्रीड़ा के पश्चात् वसुदेव गहन निद्रा में थे; तभी अंगारक ने वहां आकर वसुदेव का हरण कर लिया। किन्तु तभी श्यामा की नींद खुल जाने से श्यामा ने बहादुरी से आकाश में अंगारक का पीछा किया व उसे रोककर तलवार तान कर उसके सामने खड़ी हो गई। तब अंगारक ने श्यामा से कहा कि तु मेरी बहन भी है और स्त्री भी है; अतः तू मेरे मार्ग से हट जा। अंगारक के श्यामा से ऐसा कहने पर दोनों में घमासान होने लगा। तभी वसुदेव ने मुष्टिकाओं से अंगारक के ऊपर तीक्ष्ण प्रहार किये, जिससे प्राण रक्षा हेतु अंगारक ने वसुदेव को आकाश में ही छोड़ दिया। इस कारण आकाश से नीचे जमीन पर आकर वसुदेव चंपा नगरी के बाहरी उद्यान में स्थित तालाब में आकर गिरे। फिर तालाब से निकल कर समीप स्थित बासुपूज्य भगवान के जिनालय में ठहर गये। प्रातः होने पर ब्राह्मण का वेश 36 - संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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