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________________ जाती थी व वे सुधबुध भूलकर कामवासना से ग्रसित हो जाती थीं। यह देखकर नगर के वृद्धजनों ने राजा समुद्रविजय से अनुरोध किया कि वसुदेव जब प्रतिदिन नगर से बाहर निकलते हैं; तो नगर की स्त्रियां उनका रूप देखकर पागल हो जाती हैं व अपने शरीर की सुधबुध भी भूल जाती है। अतः आप कुछ कीजिये। ऐसा कहकर नगरवासी चले गये। जब एक दिन घूम-फिर कर हारे-थके वसुदेव समुद्रविजय के कक्ष में आये, तो उन्होंने वसुदेव को गोदी में बिठा लिया व बड़े प्यार से कहा कि तू कुछ कमजोर सा हो गया है। तुम्हारी कांति व्यर्थ के भ्रमण से बदली सी मालूम देती है। अतः तुम अपने स्वास्थ्य की खातिर महल या अंत:पुर के बगीचे में ही मंत्री पुत्रों के साथ भ्रमण कर लिया करो। इसके बाद वसुदेव ऐसा करने लगे। हरिवंश पुराणानुसार एक दिन कुब्जा नाम की दासी महारानी शिवादेवी के विलोपन हेतु जा रही थी। तब वसुदेव ने उससे विलोपन छीनकर उसे तंग किया। तब वह बोलीइसी कारण से तो तुम्हें बंधनागार में डाला गया है। यह सुनकर वसुदेव ने इसका मतलब जानना चाहा। तब उस दासी ने वसुदेव को सब सच-सच बता दिया। किन्तु उत्तर पुराण के अनुसार एक दिन निपुण कुमार नाम के सेवक ने वसुदेव से यह बात कह दी कि तुम्हें बाहर निकलने से मना करने हेतु ही महल के आसपास ही भ्रमण करने को कहा गया है; क्योंकि आपके देखने मात्र से नगर की स्त्रियां कामातुर होकर सभी मदिरापान की हुई के समान हो जाती है। अतः प्रजा की शिकायत पर ही आप पर यह प्रतिबंध लगाया गया है। 4. संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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