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________________ तब धीवर ने भविष्य में होने वाली संतानों में भेद की बात कहीं। यह सुनकर गांगेय ने आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत लेकर कहा कि मैं कभी विवाह नहीं करूंगा, अतः ऐसी स्थिति निर्मित ही नहीं होगी। गांगेय की यह बात सुनकर धीवर प्रमुख बोला, हे नरोत्तम! संसार में आपका नाम सदा अमर रहे। क्योंकि आपने अपने पिता की इच्छा पूर्ति के लिए ऐसी कठोर एवं दृढ़ प्रतिज्ञा की है। हे युवराज! वास्तव में वह गुणवती नाम की कन्या मेरी है ही नहीं, यह तो वास्तव में रत्नपुर नरेश रत्नांगद व उनकी प्राणप्रिया रत्नावती की पुत्री है। जिसे किसी विद्याधर ने हरण कर यमुना किनारे स्थित अशोक वृक्ष के नीचे डाल दिया था। ऐसा आकाशवाणी से मुझे पता चला था। मेरे कोई संतान नहीं थी, अतः मैंने उसे उठा लिया व अपनी पत्नी की गोद में दे दिया। यह वही कन्या है। ऐसा कहकर उस धीवर प्रमुख ने गुणवती को राजपुत्र गांगेय के हवाले कर दिया। इन्हीं गांगेय को अपनी इस भीष्म प्रतिज्ञा के लिए भीष्म पितामह के नाम से जाना जाता है। तब गांगेय गुणवती को लेकर महलों में आये व विधिवत अपने पिता पाराशर को सौंपकर उन्हें चिंतामुक्त कर दिया। इसी गुणवती को कालांतर में गंधिका के नाम से जाना गया, जिसके यहां कुछ समय पश्चात् व्यास नाम का तेजस्वी पुत्र हुआ। व्यास अपनी विद्वता के लिए जग प्रसिद्ध थे। व्यास का विवाह सुभद्रा नाम की कन्या से हुआ। व्यास व सुभद्रा के तीन पुत्र हुए- धृतराष्ट्र, पांडु एवं विदुर। उधर चंपापुर नरेश मार्कण्डेय/ सिंहकेतु के बाद क्रमशः हरिगिरि, हेमगिरि, बसुगिरि, शूर आदि नरेशों ने चंपापुर पर शासन किया। शूर/शूरसेन नरेश की पत्नी का नाम सुरसुन्दरी था। इनके यहां अंधकबृष्टि नामक पुत्र ने जन्म लिया। जब राजकुमार अंधकबृष्टि बड़े हुए तो उनका विवाह भद्रा नाम की कन्या से किया गया। बाद में अंधकबृष्टि चंपापुर के महाराजा बने। अंधकबृष्टि नरेश के यहां रानी भद्रा ने एक के बाद एक 10 पुत्रों को जन्म दिया। वे सभी पुत्र अति बलशाली व सुन्दर थे। इन पुत्रों के नाम क्रमशः समुद्रविजय, 24 - संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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