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________________ के दो पुत्र थे। बड़े का नाम विष्णु व छोटे का नाम पदमरथ था। जब राजा मेघरथ व विष्णु ने जिन दीक्षा धारण कर ली; तो कुरूवंश के अगले शासक पदमरथ बने। उस समय उज्जैन में महाराजा श्रीवर्मा का राज्य था। उनके मंत्रियों में प्रमुख मंत्री बलि, बृहस्पति, प्रहलाद व नमुचि थे। इसी समय 700 मुनियों के साथ आचार्य श्री अकंपन महाराज उज्जैन पधारे। जब उज्जैन नरेश श्रीवर्मा अपने सभासदों के साथ मुनिसंघ के दर्शनों को गये; तो ध्यानस्थ होने के कारण उन्होंने राजा आदि को आशीर्वाद नहीं दिया। तब चारों मंत्रियों ने उन मुनिश्वरों को ढोंगी वृषभ-तुल्य कहा। उसी समय संघ के एक मुनि श्री श्रुतसागर महाराज उन्हें आते दिखे, जिन्हें मंत्रियों आदि ने युवा वृषभ कहकर उनका मजाक उड़ाया। इससे वाद-विवाद व बाद में शास्त्रार्थ छिड़ गया। उन मुनिश्वर ने विद्वता के अभिमानी उन मंत्रियों को शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया व आचार्य श्री के पास आकर इस संपूर्ण घटना के बारे में उन्हें बता दिया। बाद में गुरु आज्ञा पाकर श्रुतसागर महाराज विवाद के स्थान पर आकर ध्यानस्थ हो गये। रात्रि में एकांत पाकर उन चारों मंत्रियों ने श्रुतसागर महाराज पर शस्त्राघात करना चाहा; पर वे चारों मंत्री वहीं स्तंभित हो गये। जब प्रातःकाल यह समाचार उज्जैन नरेश श्रीवर्मा को मिला, तो उन्होंने उन चारों मंत्रियों के सिर के बाल मुंडवाकर, गधे पर बिठाकर अपने राज्य से उन्हें निष्कासित कर दिया। ___ यही निष्कासित मंत्री घूमते-फिरते हस्तिनापुर पहुँच गये। वहां अपनी वाक्य पटुता व चतुराई से इन चारों निष्कासित मंत्रियों ने हस्तिनापुर नरेश को प्रभावित कर मंत्री पद प्राप्त कर लिया। इस समय राजा पद्मरथ वहां के नरेश थे। कुछ समय पश्चात् जब शत्रु राजा ने हस्तिनापुर पर आक्रमण किया, तो उन मंत्रियों में से बलि नाम के मंत्री ने अपने युद्ध कौशल से युद्ध में शत्रु राजा को पराजित कर बंदी बना लिया और महाराज पद्मरथ को सौंप दिया। महाराज पद्मरथ इस विजय से एवं बली के कार्य से अत्यन्त संतुष्ट हुए 20 - संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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