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________________ जन्मोत्सव मनाया व उनका नाम श्री शान्तिनाथ रखा। बाद में शान्तिनाथ जी ने चक्रवर्ती पद प्राप्त किया। राजा विश्वसेन की दूसरी रानी यशस्वती के गर्भ से द्रढरथ का जीव- जो पहले विजय का जीव था-स्वर्ग से चयकर जन्म लेकर चक्रायुध पुत्र के रूप में जन्मा। बाद में यही चक्रायुध भगवान शान्तिनाथ के गणधर बने। एक बार दर्पण में मुख देखने पर चक्रवर्ती शान्तिनाथ को वैराग्य हो गया। वे मुनि बनकर घोर तपश्चरण करने लगे। आपको प्रथम आहार दान शिवमंदिरपुर नरेश सुमित्र ने दिया था। 16 वर्ष तपश्चरण के बाद पौष शुक्ल दशमी को उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई व ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी को सम्मेदाचल पर्वत से उन्होंने मोक्षलक्ष्मी का वरण किया। आपकी समवशरण सभा में 36 गणधर उपस्थित रहते थे। आप कुरूवंश के शिरोमणि थे। चक्रायुध ने भी बाद में तपश्चरण कर मोक्षलक्ष्मी का वरण किया। कुरुवंश में तीर्थंकर शान्तिनाथ के पश्चात् उनके पुत्र श्री मन्नारायण हस्तिनापुर के महाराजा हुए। इनके पश्चात् फिर क्रमशः शान्तिवर्धन, शान्तिचंद्र, चंद्रचिह्न व कुरु नरेश हुए। कई पीढ़ियों पश्चात् इसी वंश में महाप्रतापी शूरसेन नरेश हुए। उनकी धर्मपरायणा स्त्री का नाम श्रीकांता था। सवार्थसिद्धि देवलोक से चयकर आपकी कोख में 17वें तीर्थंकर श्री कुंथुनाथ के रूप में पधारे। आप भगवान शान्तिनाथ की भांति ही कामदेव व चक्रवर्ती भी थे। आप श्रावण कृष्ण दशमी को माता के गर्भ में आए। आपका जन्म वैशाख शुक्ल प्रतिपदा को हुआ। अन्य तीर्थंकर भगवंतों की भांति आपका जन्माभिषेक भी इन्द्रों ने पांडुक शिला पर ले जाकर वहां 1008 कलशों से अभिषेक कर मनाया। किन्तु राज्यारोहण के अनेक वर्षों के पश्चात् पूर्व भव स्मरण से आपको वैराग्य हो गया। आप 6 दिवस पश्चात् आहार ग्रहण करते थे। धर्ममित्र नाम के श्रावक ने सर्वप्रथम आपको खीर का आहार दान दिया था, जिससे उसके घर पंच-आश्चर्य हुए थे। मन:पर्यय ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् 18 - संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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