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________________ अकंपन का साथ देकर अर्ककीर्ति को शीघ्र ही बंदी बना लिया। बाद में जयकुमार अपने पुत्र अनंतवीर्य को राज्य देकर मुनि बन गये व भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) के 71वें गणधर बन गये। इस प्रकार राजा सोम व श्रेयांस दान तीर्थ के प्रवर्तक, राजा अकंपन स्वयंवर विवाह विधि के प्रवर्तक व भगवान ऋषभदेव मोक्षमार्ग के प्रवर्तक बने। जयकुमार घोर तपश्चरण कर उसी भव से मोक्ष गये व रानी सुलोचना भी आर्यिका बनकर तपश्चरण कर अच्युत स्वर्ग में देव हुईं। राजा अनंतवीर्य के बाद कुरू वंश में कुरूचंद्र, शुभंकर, धीर, वीर, धृतिंकर, धृतदेव, गुणदेव व धृतिमित्र राजा हुए। तत्पश्चात सुप्रतिष्ठ, भ्रमघोष, हरिघोष, हरिध्वज, रविघोष, महावीर्य, पृथ्वीनाथ, प्रभु, गजवाहन, विजय आदि राजाओं ने हस्तिनापुर का राजपाट संभाला। तत्पश्चात चतुर्थ चक्रवर्ती सनतकुमार, सुकुमार, वीरकुमार, विश्व, वैश्वनर, विश्वध्वन, वृहत्केतु वहां के राजा बने। तत्पश्चात वहां का राज्य राजा विश्वसेन ने संभाला। आपकी धर्मपरायणा पत्नी का नाम ऐरादेवी था। भाद्रकृष्ण सप्तमी को 16वें तीर्थंकर, जो पांचवें चक्रवर्ती व बारहवें कामदेव भी थे, माँ ऐरादेवी के गर्भ में आए। वही शान्तिनाथ भगवान बने। इसी समय विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी के नगर रथनुपूर में ज्वलनजटी का शासन था। इसकी पुत्री का विवाह जिसका नाम स्वयंप्रभा था, पोदनपुर नरेश प्रजापति पत्नी मृगावती के पुत्र त्रिपृष्ठ से हुआ था। त्रिपृष्ठ नारायण था व उसका भाई विजय बलभद्र था। भगवान शान्तिनाथ जन्म के पूर्व पांचवें भव में अमिततेज नाम के नरेश थे। अमिततेज का जीव मरकर रतिचूलक देव बना व विजय बलभद्र मरकर उसी स्वर्ग में मणिचूलक देव बनें। वहां से चयकर प्रभाकारी नरेश स्तमित सागर के यहां रानी वसुंधरा के उदर से अमिततेज का जीव अपराजित नाम के बलभद्र के रूप में जन्मा व उसी राजा की रानी अनुमति के गर्भ से विजय बलभद्र का जीव अनंतवीर्य नाम के 16 - संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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