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________________ विस्तार से वर्णन किया। कर्म के भेद बतलाकर कर्मों को कैसे नष्ट किया जाता है इसके उपाय बतलाये । गिरनार पर प्रथम उपदेश देकर भगवान ने पर्वत से उतरकर धर्मचक्र को आगे-आगे चलाकर संपूर्ण पृथ्वी पर विचरण कर अपार देव व जनसमूह जिनके साथ-साथ चलता था । यतियों, ऋषियों व मुनियों की भीड़ जिनके साथ चलती थी, जिनकी चरण रज को पाने के लिए लोग कुछ भी करने को तत्पर थे, ऐसे प्रभु ने अपार व अनंत विभूतियों के साथ छत्र, चंवर, भामंडल, अष्ट-प्रतिहार्य व अष्ट- मंगल द्रव्य सहित होकर मलय देश के भद्रिलपुर नगर के आदि अनेक स्थानों पर भगवान का समवशरण गया व सभी जगह उन्होंने अपनी अमृतमयी वाणी से लोगों के हृदयों में बसे गहन अंधकार को दूर किया। देवकी ने श्रीकृष्ण के बाद एक और पुत्र को जन्म दिया था। नामकरण संस्कार में इस पुत्र का नाम गजकुमार रखा गया। एक बार जब भगवान नेमिनाथ का समवशरण द्वारिका आया तो श्रीकृष्ण के साथ गजकुमार भी भगवान के दर्शनों व उपदेश सुनने के लिए वहां गये। वहां श्रीकृष्ण ने तीर्थंकरों, चक्रवर्तियों, अर्धचक्रियों, बलभद्रों व प्रतिनारायणों की उत्पत्ति व उनके अंतराल को जानना चाहा। तब भगवान नेमिनाथ ने अपनी दिव्यवाणी से विस्तार से उनका वर्णन किया। उन्होंने श्रीकृष्ण की आयु दस हजार वर्ष बतलाई। उन्होंने ग्यारह रूद्रों के बारे में भी बतलाया तथा भावी तीर्थंकरों के बारे में भी बतलाया। गजकुमार को भगवान की देशना सुनने के पश्चात् वैराग्य हो गया। जब यह बात सोमशर्मा को विदित हुई तो उसे काफी क्रोध आया; क्योंकि उसकी पुत्री का परिणय गजकुमार से होना तय हो गया था। उधर गजकुमार मुनि बनकर तपस्या करने लगे। प्रतिशोध की ज्वाला में जलते हुए सोमशर्मा ने ध्यानावस्था में गजकुमार मुनिराज के शिर पर अग्नि प्रज्वलित कर दी। तभी गजकुमार मुनिराज को शुक्ल ध्यान से केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई तथा वे अंतःकृत केवली होकर मोक्ष गमन कर गये । 166 संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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