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________________ महाबली नेमिनाथ का वैराग्य हरिवंश पुराण में उल्लेख है कि - एक दिन नेमिप्रभु व श्रीकृष्ण राज्य सभा में विराजमान थे, इस राज्यसभा का नाम कुसुमचित्रा था। वहीं यह चर्चा चल पड़ी कि नेमिनाथ व श्रीकृष्ण में कौन महाबली है। तब सभी उपस्थित सभासदों ने श्रीकृष्ण को अधिक ताकतवर बतलाया। उसी समय नेमिनाथ ने अपने हाथ को श्रीकृष्ण की गोद में रख कर एक अंगुली को टेढ़ाकर श्रीकृष्ण से कहा कि इस अंगुली को सीधा कर दो पर श्रीकृष्ण उस अंगुली को सीधा न कर सके। तब नेमिनाथ ने अपनी भुजा ऊपर उठा ली, जिससे श्रीकृष्ण उनकी अंगुली पर ही लटक गये। नेमिनाथ के अपार बल को देखकर श्रीकृष्ण ने नेमिनाथ से कहा कि हे प्रभो! आपका बल लोकोत्तर व आश्चर्यकारी है। तब से श्रीकृष्ण नेमिनाथ की पूजा करने लगे। किन्तु तभी से उनके मन में यह शंका भी घर कर गई कि क्या इनके रहते हमारा राज्य स्थिर रह सकेगा । किन्तु नेमिनाथ इस घटना के बाद से राज्य कार्यों से अन्यमनस्क से रहने लगे। विजयार्ध पर्वत की उत्तरी श्रेणी में श्रुतशोणित नाम का नगर है। वहां के नरेश का नाम वाण था। वाण नरेश की एक अत्यन्त सुन्दर कन्या थी। उसका नाम ऊषा था। वह बचपन से ही प्रद्युम्न पुत्र अनिरुद्ध पर आसक्त रहती थी। एक दिन जब यह बात ऊषा की सखी को मालूम चली तो वह सखी अनिरूद्ध का हरण कर लाई व ऊषा का विवाह अनिरूद्ध से करा दिया। जब श्रीकृष्ण को अनिरूद्ध के हरण का पता चला तो वे बलदेव, शम्ब व प्रद्युम्न को साथ लेकर श्रुतशोणित नगर जा पहुँचे व वहां के नरेश बाण को युद्ध में परास्त कर ऊषा सहित अनिरूद्ध को पुनः द्वारिका वापिस ले आये । एक समय शरद ऋतु में सभी यादव नरेश नेमिनाथ के साथ अपने अंत:पुर को साथ लेकर मनोहर नाम के सरोवर में जल क्रीड़ा हेतु गये। जब वे उस सरोवर में जल क्रीड़ा कर रहे थे, तो वहीं जल उछालते समय नेमिनाथ व सत्यभामा के संक्षिप्त जैन महाभारत 159
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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