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________________ ऊपर एक वृक्ष बाण छोड़ दिया। परन्तु दूरदर्शी श्रीकृष्ण ने अग्नि बाण छोडकर उसे मार्ग में ही ध्वस्त कर दिया। तब उसने पाषाण वर्षा हेतु पर्वत बाण छोड़ा। जिसे श्रीकृष्ण ने बज्र बाण छोड़कर नष्ट कर दिया। श्रीकृष्ण के इस रण कौशल को देखकर वह राक्षस भी वहां से भाग गया। श्रीकृष्ण ने अपने युद्ध कौशल से शीघ्र ही शल्य को परास्त कर दिया। तब देवों ने आकाश से पुष्प वर्षा की। तभी रथनेमि, अर्जुन व अनावृष्टि चक्रव्यहूं के भेदन हेतु आगे बढ़े व उन्होंने क्रमशः इन्द्र प्रदत्त शांक, देवदत्त व वलाहक नाम के शंख फूंके। जिससे विरोधी सेना में खलबली मच गई। तब शीघ्र ही अनावृष्टि ने चक्रव्यह के मध्य भाग को भेद डाला। रथनेमि ने भी चक्रव्यूह के दक्षिण भाग का भेदन कर दिया। वीर अर्जुन ने चक्रव्यूह के पश्चिमोत्तर भाग को नष्ट कर दिया। इस घटना से महायुद्ध प्रारंभ हो गया। नारद यह युद्ध देखकर पुष्पवृष्टि कर आसमान में नाच रहे थे। हजारों योद्धा युद्ध में खेत हो गये। अपनी व्यूह रचना को ध्वस्त होते देखकर जरासंध क्रोध से भर गया व उसने दुर्योधन आदि तीन वीरों को युद्ध करने के लिए भेजा। दुर्योधन अर्जुन के साथ, विरूप्य रथनेमि के साथ एवं हिरण्यनाभ युधिष्ठिर के साथ युद्ध करने लगे। इस घमासान युद्ध में दोनों ही पक्षों के भारी मात्रा में रथ, हस्ती, अश्व व सैनिक नष्ट हुए। इस भीषण युद्ध को देखकर साहसी योद्धा तो उमंग के साथ युद्ध करने में रत थे; पर भीरू पुरुष समर क्षेत्र त्याग कर पलायन करने लगे। इसी बीच दुर्योधन ने अर्जुन से कहा- हे अर्जुन सौभाग्यवश तुम लोग लाक्षागृह से सुरक्षित निकल गये। पर अब क्या विनाश की इच्छा से प्रेरित होकर फिर तुम मेरे सामने वीर योद्धा बनकर खड़े हो। दुर्योधन के यह वचन सुनकर अर्जुन ने कुछ नहीं कहा, पर प्रत्युत्तर में वह अपना धनुष बाण संभाल कर प्रलय सूचक घन सदृश्य गर्जना करता हुआ भीषण बाणों की वर्षा करने लगा। इस बाण वर्षा से दुर्योधन रथ सहित आच्छादित हो गया और उसका धनुष टूट गया। तब दुर्योधन संक्षिप्त जैन महाभारत - 125
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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