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________________ कपटी तो हैं ही छुद्र भी हैं। वे संधि के लिए कदापि प्रस्तुत नहीं हैं। दूत के ये वचन सुनकर मृदुभाषी व न्यायप्रिय युधिष्ठिर ने कहा कि हमने आपको केवल इसलिए कौरवों के पास भेजा था कि हम अपयश के भागी न बनें। राज्य पुनरुद्धार के लिए हमें कौरवों से युद्ध करने में अब कोई दोष नहीं लगेगा। यह सोचकर पाण्डवों ने कृष्ण के साथ मिलकर कौरवों पर आक्रमण करने की योजना बनानी भी प्रारंभ कर दी। उधर दुर्योधन से अपमानित विदुर को विरक्ति उत्पन्न होने लगी। वे विचार करने लगे कि संपत्ति, प्रभुता, विषयवृत्ति आदि भौतिक सुखों को धिक्कार है; जिनके कारण पिता-पुत्र, मित्र-मित्र, भ्राता-भ्राता व निकट संबंधियों में भी विरोध उत्पन्न हो जाता है। यह सोचकर वे विपुलमना विदुर विश्वकीर्ति मुनि श्री के पास गये व उनसे दीक्षा ग्रहण करने के बाद मुनि बन कर विहार करने लगे। संक्षिप्त जैन महाभारत - 117
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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