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________________ देखकर कृष्ण ने उसे गले लगा लिया । और प्रद्युम्न को आशीर्वाद दिया। तब प्रद्युम्न ने भी इस ठिठोली के लिए पिता से क्षमा मांगी और उनके चरण छुये। तत्पश्चात सभी बंधुजनों के साथ भारी समारोह पूर्वक कृष्ण ने अपने पुत्र प्रद्युम्न को द्वारिका में प्रवेश कराया। बाद में रूक्मणी व जामबंती ने भी प्रद्युम्न का खूब सत्कार किया। फिर सभी ने प्रद्युम्न का विवाह उदधि कुमारी तथा दूसरी अन्योन्य उत्तमोत्तम कन्याओं से करवा दिया। इसके बाद जामवंती ने शंब नामक पुत्र को व सत्यभामा ने सुभानु नामक पुत्र को जन्म दिया। कृष्ण की अन्य रानियों के भी अनेक पुत्र उत्पन्न हुए। सैकड़ों कुमारों से सेवित शंब सभी क्रीड़ाओं में सुभानु को दबा देता था व सातिशय क्रीड़ा करता था। एक बार शंब व प्रद्युम्न भील के भेष में जाकर रूक्मणि के भाई रूक्मी की पुत्री वैदर्भी का हरण कर लाये व प्रद्युम्न ने तो उससे शादी भी कर ली। शंब ने भी एक ही रात में 100 कन्याओं से विवाह कर अपनी माता को खुश कर दिया। इसी प्रकार बलदेव के अनेक पुत्र थे। जिनमें प्रमुख थे- उन्मुंड, निषध, प्रकृतिद्धति, चारूदत्त, ध्रुव, पीठ, शक्रंदमन, श्रीध्वज, नंदन, धीमान, दशरथ, नरदेव, प्रभु, महाधनु आदि । कृष्ण के प्रमुख पुत्रों के नाम थे- भानु, सुभानु, भीम, महाभानु, शुभानुक, वृहद्रथ, अग्निशिख, विष्णुंजय, अकंपन, महासेन, धीर, गंभीर, उदधि, गौतम, वसुधर्मा प्रसेनजित, सूर्य, चंद्रवर्मा, चारूकृष्ण, सुचारू, देवदत्त, भरत, शंख, प्रद्युम्न, शंब आदि । उन महा यशस्वी यादवों के पुत्र, प्रपौत्र, बुआ के लड़के व भानजे हजारों लाखों की संख्या में थे। सब मिलाकर महाप्रतापी व कामदेव से सुंदर साड़े तीन करोड़ कुमार द्वारिका में क्रीड़ा करते थे। अत: द्वारिका अति सुन्दर प्रतीत होती थी। अथनंतर यशोदा पुत्री व कृष्ण की बहन अत्यन्त रूपवती व कलाओं में निपुण थी। किन्तु बचपन में ही कंस ने उसकी नाक दबाकर उसे चपटा कर दिया था। एक बार बलदेव के लड़कों ने आकर चपटी नाक वाली कहकर उसे चिढ़ा दिया 114 ■ संक्षिप्त जैन महाभारत "
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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