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________________ - इसी रथ में सवार होकर अर्जुन ने दुर्योधन की सेना के साथ भीषण युद्ध प्रारंभ कर दिया। इसी समय गांगेय ने दुर्योधन को युद्ध न करने व विराट नरेश से संधि करने हेतु बहुत समझाया पर दुर्योधन व कर्ण दोनों ने ही ऐसा करने से मना कर दिया। तब मजबूर होकर दुर्योधन के साथ गांगेय व द्रोणचार्य भी युद्ध करने लगे। तब अर्जुन ने अपने नाम लिखे अनेक बाण गांगेय के पास भिजवाये। गांगेय ने ये बाण कौरवों को दिखाये। जिन्हें देखकर कौरव भयभीत हो गए। फिर भी दुर्योधन नहीं माना व उसने अपनी सेना को अर्जुन के सामने दीवार की तरह खड़ा कर दिया। इसी बीच अर्जुन का सारथी उत्तर कौरवों के वाणों से आहत हो गया। यह देखकर अर्जुन ने आग्नेय वाण छोड़कर कौरवों की सेना को दग्ध कर अपना गांडीव उठा लिया व कर्ण के रथ को ध्वस्त कर दिया और दुर्योधन के भाई शत्रुजय को यमलोक पहुँचा दिया। इसके बाद अर्जुन ने कर्ण के भाई विकर्ण को भी पराजित कर दिया। इसी बीच वीभत्स नाम के धनुर्धारी ने विकर्ण का मस्तक भी छेद दिया। यह देखकर कर्ण ने भी पार्थ के सारथी, उसके रथ एवं ध्वजा को छेद डाला। पर कर्ण अर्जुन के सामने देर तक नहीं टिक सका। अर्जुन ने युद्ध में कर्ण को धराशायी कर उसे मूर्छित कर दिया। तभी दुःशासन युद्ध हेतु आगे आ गया। जिसे पार्थ ने अपने 25 वाणों के प्रहार से अर्धमृत तुल्य कर दिया। इसी बीच भीष्म पितामह अर्जुन के सामने युद्ध को आ गये। अर्जुन के विनम्र अनुरोध को भी न मानकर वे अर्जुन से युद्ध करने लगे। परन्तु अर्जुन ने शीघ्र ही उनके रथ व सारथी को विद्ध कर दिया। तब गांगेय ने मोहन, मारण व स्तंभन वाणों का प्रयोग कर अर्जुन को युद्ध में ललकारा, परन्तु पार्थ के आगे वे सब बेकार सिद्ध हुए। गांगेय को कमजोर समझ कर द्रोणाचार्य अर्जुन के सामने आ गये। पर अर्जुन ने उनसे युद्ध में न उतरने का विनम्र अनुरोध किया। पर द्रोणाचार्य अर्जुन से बोले, पार्थ पहला प्रहार आप कीजिये। पर पार्थ ने निवेदन कर कहा कि आप ही प्रथम प्रहार करें। तब लाखों बाण एक संक्षिप्त जैन महाभारत - 105
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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