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________________ बनाया हैं तो किसीमें बार बार होठोंको बंद करना पडे, जैसे रसनाबंध मत्तगयंद छंदकी रचना भी कविने कि है। एक मत्तगयंद छंदके प्रत्येक चरणके आधे वर्णाको उलटा करे तो चरणका दुसरा भाग बन जाता हैं और इतना सुंदर साकिया, स्वस्तिक का चित्र बनता हैं की देखते रह जाय। वसंततिलकाः यह वार्णिक छंद हैं जिसमें १४ वर्ण होते है। यह छंद जैन स्तोत्र साहित्यका लोकप्रिय छंद है। भक्तामर और कल्याणमंदिर जैसे कई प्रसिद्ध छंद इस रचनामें लिखे गये हैं कविने इस छंदमें अष्टकोन पदाकार चित्रकृतिमें जिनश्वर भगवान की स्तुति कि है। इसमें विशेषता यह हैं कि पहले चरणका अंतिम अक्षर दुसरे चरणका प्रथम अक्षर हैं यावत् दूसरे - तीसरे चरणका अंतिम अक्षर तीसरे - चौथे चरणका प्रथम अक्षर हैं और चौथे चरणका अंतिम अक्षर पहले चरणका प्रथमाक्षर है। (छंद ४८५) __ छप्पयः इस छंदमें छह चरण होते हैं। कहीं सर्व मुक्ताक्षरों का, तो कहीं असंयुक्ताक्षरों का तो कहीं सर्व लघु अक्षरों का प्रयोग कर कविने छप्पय छंदमें अभिनव प्रयोग किये है। छप्पय छंदम कविने ज्ञानियों के, देवाके और संसारीयों के नौ रसोंका सटिक वर्णन किया है। (१) शृंगार रस, (२) वीर रस, (३) करुणा रस, (४) हास्यरस, (५) रौद्ररस, (६) भयरस, (७) विभत्स रस, (८) अद्भुत रस, (९) शांतरस। एक छप्पय में तो संसारी जीवोक ५६३ भेद बडी कुशलतास कविन गिना दिय है। (छंद क्र. ५११) सवैय्याः इस छंदके प्रत्येक चरणमें ३१ या ३२ मात्राये होती हैं अतः १६ और १५ या १६ और १६ पर यति होती है। कई सवैय्यामें असे चित्रांलकार चित्रित किये हैं की केवल चित्रके आधारपर सवैय्या सामने न हो तो पाटक के दिमागकी अच्छी कसरत हो जाये। एक सवैय्यमें कविने सभी हृस्व वर्णोका प्रयोग किया हैं तो एकमें सभी दीर्घ अक्षरोंको काममें लिया है। कामधेनु कवित्त रचनाः कविप्रतिभाका अप्रतिम उदाहरण हैं कामधेनु कवित्त रचना - जिसमें एक ही विपय, एक ही भावका कविन दोहा, मत्तगयंद, चौपाई, सोरटा, अडिल्ल तथा कवित्त छंदामें प्रकट किया है। उस दोहेका भावार्थ है श्री जिनचंद मुनिंदका वंदन देव और मनुप्यकं लिये हितकारी हैं। उनकी काय पाप नष्ट होते है, उनके ध्यानसे भयका निवारण होता है। उनके ज्ञानसे आत्मा अपने स्वरूपका विस्तार करती है। (छंद ४१७५०५) देवरचनामें प्रयुक्त अनेकानेक छंद वाग्देवीके कृपापात्र महाकवि हरजसरायजीकी व्युत्पन्न प्रतिमा, छंदशास्त्रकी मर्मज्ञता तथा अक्षरज्ञानकी व्यापकताका दिग्दर्शन कराते है। ૨૨ + ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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