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________________ कविवर्य श्री हरजसरायजीकृत 'देवरचना' रुपाली बाफना [શ્રી રૂપાલીબહેન બાના ધુલિયા પાસેના નાના સેંટરમાં રહીને ખૂબ મુશ્કેલીઓ વેઠીને પણ લગનપૂર્વક સંશોધનમાં કામ કરી રહ્યાં છે. પ્રસ્તુત લેખમાં તેમણે કવિ શ્રી હરસરાયજીની એક વિશિષ્ટ કૃતિનો પરિચય આપ્યો છે. – સં.] ग्रंथकर्ताका परिचयः - देवरचनाके प्रणेता कवि हरजसरायजी अभी-अभी लगभग २५० वर्ष पहले हुए है। तथापि इनका जन्म, मृत्यु या जीवनवृत्तांतके बारेमें परिचय टिकसे प्राप्त नहीं है। उनका संक्षिप्त परिचय ग्रंथोके आधार पर कुछ इस तरह मिलता है वे पंचनद प्रान्तवासी कसूर ( कुशपूर) निवासी थे। यह शहर पूर्व में अखंड भारत के लाहौर जिलेमें था। यह प्रदेश आजकल पाकिस्तान के अंतर्गत हैं। ऐसी मान्यता हैं की वे आचार्यश्री नागरमलजी म. के श्रावक तथा पंजाब स्थानकवासी परंपराके आचार्यश्री कुशलचंदजी के गुरुभ्राता थे। जैन सिद्धांतो के साथ अन्य मत-मतान्तरो पर भी उनका प्रभुत्व था। कहा जाता है की उन्होंने अन्य कई ग्रंथका भी प्रणयन किया परंतु वे ग्रंथ आज उपलब्ध नही है। उनकी उपलब्ध तीन रचनाये पंजाब में अत्यंत प्रख्यात है। (१) देवाधिदेव रचना ( २ ) साधु गुणमाला (३) देवरचना। तीनो ही कृतिया पटनीय, मननीय, धारणीय हैं। (१) देवाधिदेव रचना: कविश्रेष्ठ हरजसरायजीने सबसे पहले वि.सं. १८६० में देवाधिदेव रचना लिखी। जिसमें परमेष्टी मंत्र के प्रथम दो देवपदो की स्तुति की है। अरिहंत और सिद्ध प्रभु के गुणोंका किर्तन इस रचना का प्रमुख विषय है, जिसमें ८५ पद हैं। (२) साधु गुणमाला : देवाधिदेव रचना के माध्यम से अरिहंत और सिद्धप्रभु का किर्तन करने के बाद कविने गुरु पद के प्रति अपना समर्पण भाव साधु गुण-माला रचना में किया हैं । परमेष्टिमें आचार्य, उपाध्याय का भी समावेश हो जाता है अतः अपने आराध्य के गुणोंकी माला पिरोनेमें कविने विद्वत्ता का परिचय दिया हैं। इसके कुल १२५ पद है और रचना का काल वि. सं. १८६४ हैं । (३) देवरचना: पंच परमेष्टि के चरणों में देवता भी वंदन करते है इसलिये कविवर्य श्री हरजसरायजीकृत 'देवरचना' + १७
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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