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________________ यशोविजयजी महाराजश्री की स्वहस्तलिखित हस्तप्रतों के एवं उनके दिव्य-शक्ति युक्त हस्ताक्षरों के परिचय-दर्शन-वंदन सुलभ कराने की पवित्र उत्कट भावना से इस कृति का जन्म हुआ । आचार्यश्री यशोदेवसूरिजी द्वारा जैन साहित्य संपत्ति में यह एक बहुमूल्य योगदान है । इसके प्रकाशन में उपाध्यायधीजी की अद्यावधि स्वहस्ताक्षरीय कतियाँ कौनकौनसी एवं कितनी प्राप्त हुई है उसकी विपुलता की जानकारी से गुणानुरागी महानुभावों को सविशेष आनंद प्राप्त होगा | कृतियों के आदि अंत के मंगलाचरणो एवं प्रशस्तियों में जो गांभीर्य, मार्मिकता, माधुर्य एवं विशेषता हो उसका भी सभी को ज्ञानानन्द मिले इस भावना से वह अद्भुत और अनमोल ग्रंथ आ. श्री ने जिनशासन को भेंट किया है । यशोविजयजी स्मृतिग्रंथ वि.सं. २०१० में डभोई शहर में सत्रहवीं सदी के जैनशासन के अंतिम ज्योतिर्धर महोपाध्याय श्रीमद् विजययशोविजयजी की चरणपादुका की प्रतिष्टा के प्रसंग पर 'श्री यशोविजयजी सारस्वत सत्र के अंतर्गत गुणानुवाद का एक विशाल आयोजन आ. श्रीने अपने वडील गुरुदेवों के आशीर्वाद से किया था । इस प्रसंग के संदर्भ में विद्वानों से आमंत्रित लेखों, निबंधी, संस्मरणों आदि प्रकाशनयोग्य सामग्री को 'यशोविजयजी स्मृति ग्रंथ' में समाविष्ट किया गया है जिसका श्रमसाध्य संपादन कार्य आचार्यजी ने किया और उसके संपादकीय निवेदन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण वातों को उजागर किया है। इस ग्रंथ में प्रकाशित डॉ. श्रीयुत भोगीलाल सांडेसरा अपने संस्मरण में लिखते हैं कि महोपाध्याय यशोविजयजी की निर्वाणभूमि डभोई में मुनिश्री ने इतना सुंदर आयोजन किया कि गुजरात वाहर के साहित्यकारों को भी इस विषय के रसिक बना दिये । मुनिश्री के उदात्त विचारों, विशाल आदर्शो, व्यवहार कुशलता और सवको आकर्पित करके एक साथ जोड लेने की अनोखी शक्ति की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। मुनिश्री के दिल में शासन और समाज की सेवा करने का लावा उवल रहा है | अन्य एक विद्वान लेखक वकील श्री नागकुमार मकाती लिखते हैं कि पाश्चात्य देशों में ऐसी मान्यता है कि फिनिक्स नामक पक्षी के शव की राख में से नये फिनाक्ष पक्षी का जन्म होता है । वे लिखते है कि महोपाध्याय यशोविजयजी की राख में से २५० वर्षों के वाद पुनः एक 'यशोविजयजी' का जन्म हुआ है । मुनिश्री की 'यशोभक्ति' नरसिंह और मीरा की कृष्णभक्ति की तरह अत्यंत भावपूर्ण है | आ. श्रीने महोपाध्यायजी के ग्रंथों का विपुल वांचन, अध्ययन किया है। उनकी प्रेरणा से यशोभारती प्रकाशन समिति के उपक्रम से विविध पुस्तक प्रकाशित हुए है । आ. श्री ने ग्रंथो की विषय-वस्तु का संक्षिप्त परिचय दिया है । अपने विस्तृत अभ्यास एवं ज्ञान के बल पर विशिष्ट परिचय में महोपाध्यायजी द्वारा उपयोग में પ૨૦ + ૧લ્મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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