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________________ ‘सक्क' (शक्र) इंद्र की ऋद्धि, स्थान, विकुर्वणा और पूर्वभव, इनका विमान, इंद्र किस भाषा में बोलते हैं इन सव का वर्णन किया गया है। 'सज्झाय' (स्वाध्याय) शब्द का स्वरूप, स्वाध्यायकाल, स्वाध्यायविधि, स्वाध्याय के गुण व लाभ तथा स्वाध्याय से क्या सिद्धि होती है इस विषय का अच्छी तरह दिग्दर्शन कराया है। सप्तभंगी शब्द के सात भागों का विस्तृत विवेचन किया है। ‘सावय' (श्रावक) शब्द पर श्रावक की व्याख्या, व्युत्पत्ति, अर्थ, श्रावक के लक्षण, उसका सामान्य कर्तव्य, निवास विधि, श्रावक की दिनचर्या, श्रावक के २१ गुण आदि पर अच्छा व विस्तृत प्रकाश डाला गया है। हिंसा' (हिंसा) शब्द पर हिंसा का स्वरूप, वैदिक हिंसा का खण्डन, जिन मंदिर बनवाने में आते हुए दोष का परिहार आदि विषयों का विवेचन किया गया है। इस भाग में जिन-जिन शब्दों पर जो-जो कथाएँ उपकथाएँ आदि आई हैं उनको भी अच्छी तरह समझाकर विशेप रूप से दिया गया है। अभिधान राजेन्द्र कोष के निर्माता आचार्य श्री ने अपने जीवन में घोर परिश्रम किया, जिसकी कल्पना स्वप्न में भी साकार रूप नहीं ले सकती। आपने तमाम शास्त्रों का हर एक विषय का निचोड इसमें भर दिया है। किसी को भी कोई भी विषय धार्मिक, दार्शनिक, जैन सिद्धांत संबंधी देखना हो वह इस अभिधान राजेन्द्र कोष को उठाकर देखे तो उसे सब जानकारियाँ बहुत ही कम समय में एक ही जगह मिल सकेगी। प्रत्येक विषय को अच्छी तरह शास्त्रों द्वारा, युक्तियों के द्वारा, सिद्धांतों के द्वारा समजाने का पूरा पूरा प्रयत्न किया गया है। इस कोष के संबंध में 'गागर में सागर' भर दिया गया है, ऐसा कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। आचार्यश्री का अपना प्रतिदिन का पूरा-पूरा कार्य, समाज का कार्य, विहार आदि करते हुए भी केवल मात्र चौदह वर्ष में इतना कार्य कर जाना अद्भुत देवशक्ति का रूप ही माना जा सकता है। ____ आचार्यश्री द्वारा प्रणीत अन्य साहित्य आचार्य राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. का व्यक्तित्व जितना प्रभावशाली है, उनका साहित्यिक जीवन भी उतना ही गौरवपूर्ण है। 'जिस राष्ट्र, समाज और धर्म में उज्ज्वल साहित्य की सत्परंपरा बनी रहती है वही देश, समाज और धर्म जीवित रहता है।' इस बात को समझकर आचार्यश्री ने अपने जीवन व श्रम का बहुत बडा अंश इसी ज्ञान ज्योति को जलाये रखने में लगाया। अभिधान राजेन्द्र कोष' के बारे में तो हमने अभी पढा ही है। इसके अलावा भी आपने बृहत साहित्य रचना की है। जैनी-दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् वि. सं. १९०५ से 'रण कामधेनु सारणी' ग्रंथ के लेखन से प्रारम्भ हुई आपकी लेखनी आपके जीवन के अंतिम चातुर्मास (बडनगर म. प्र.) वि. सं. १९६३ में मल प्रभा शुद्ध रहस्य' के निर्माण तक अनवरत, अविश्रांत, अबाधगति से चलती ही रही। फलस्वरूप साहित्य की अनेक ૪૨૦ + ૧લ્મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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