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________________ 'पच्छित' (प्रायश्चित) इस शब्द पर प्रायश्चित का अर्थ, प्रायश्चित्त से आत्मा का लाभ, आलोचना आदि दस प्रकार के प्रतिसेवना प्रायश्चित्त, प्रायश्चित्त देने के योग्य सभा, व्यक्ति, दंडानुरूप प्रायश्चित्त, प्रायश्चित्त दान विधि, आलोचना को सुनकर प्रायश्चित देना, प्रायश्चित्त का काल आदि का मार्मिक ढंग से विस्तार है। 'पज्जुसणाकल्प' (पyषणाकल्प) शब्द पर पyषण पर पूर्ण विवेचनः कब करना, किस तरह करना, भादवा सुदी पंचम पर अपने विचार, ग्रन्थों की मान्यता, साधुओं संबंधी मार्गदर्शन, केशलुंचन आदि विषयों पर प्रकाश डाला है। ___ 'पडिक्कमण' (प्रतिक्रमण) --शब्द पर प्रतिक्रमण, रात्रि, देवसिक, पाक्षिक, चउमासिक और सांवत्सरिक इन पाँचों प्रतिक्रमणों का अच्छा विवेचन किया है। 'पवज्जा' (प्रव्रज्या-दीक्षा) इस शब्द पर प्रवज्या शब्द का अर्थ, व्युत्पत्ति, दीक्षा का तत्त्व, किससे किसको दीक्षा देना, दीक्षा की पात्रता, किस नक्षत्र किस तिथि में दीक्षा लेना, दीक्षा में अपेक्ष्य वस्तु, दीक्षा में अनुराग, सुन्दर गुरु योग, दीक्षा किस प्रकार देना, चैत्यवंदन, दीक्षा में ग्रहण सूत्र, गुरु से अपना निवेदन, दीक्षा की प्रशंसा, दीक्षाफल, ग्यारह गुणों से युक्त श्रावक को दीक्षा देना आदि दीक्षा संबंधी सब विषय पूर्णरूप से विस्तारपूर्वक बताया गया है। 'बंध' (बंधन) शब्द पर बंध - मोक्षसिद्धि, बंध के भेद, प्रभेद, बंध में मोदक का दृष्टांत, ज्ञानावरणादि आठ कर्मो के बंध का सुन्दर विवेचन दिया है। भरह' (भरत) इस शब्द पर भारतवर्ष के स्वरूप का वर्णन, दक्षिणार्द्धभरत के स्वरूप का वर्णन, वहाँ के मनुष्यों के स्वरूप का वर्णन इस प्रकार भूगोल संबंधी विषय कथा आदि दी है। पांचवे भाग में अनेक शब्दों पर कथा एवं उपकथाएँ भी दी है। अभिधान राजेन्द्र कोष का छठ्ठा भाग मंगलाचरण सिरि वद्धमाणसामि, नमिउण जिणागमस्स गहिउण। सारं छठे भागे, भवियजणसुहावहं वोच्छं॥ कोष का छट्टा भाग 'म' अक्षर से प्रारम्भ हुआ है और 'व्यासु' अथवा वासु (व्यास) शब्द पर इस भाग की समाप्ति हुई है। इस भाग में १४६५ पृष्ट हैं। इस भाग में म, र, ल, व, केवल इन चार अक्षरों के शब्दों पर ही पूरा विस्तार किया गया है। यकार का प्राकृत में वर्ण परिवर्तन के नियमानुसार 'ज' होता है। राजेन्द्र कोष में प्राकृत यकारादि शब्द नहीं है। जिसमें 'व' अक्षर से प्रारम्भ होने वाले शब्द ७०८ पृष्ठों में है। कुछ शब्दों का वर्णन निम्नलिखित है: 'मग्ग' (मार्ग) इस शब्द पर मार्ग के दो भेद द्रव्यस्तव और भावस्तव, मार्ग ૪૧૮ + ૧ભી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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