SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 463
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदि पचीस विषयों पर बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रकाश डाला हैं। ___ 'आणा' - शब्द पर आज्ञा के सदा अराधक होने पर ही मोक्ष, परलोक में आज्ञा ही प्रमाण हे और आज्ञा के व्यवहार आदि का बहुत ही अच्छे ढंग से वर्णन किया है। ___ 'आयरिंय' - शब्द पर आचार्य पद का विवेक, आचार्य के भेद, आचार्य का ऐहलौकिक और पारलौकिक स्वरूप, आचार्य के भ्रष्टाचारत्व होने में दुर्गुण, एक आचार्य के काल कर जाने पर दूसरे के स्थापन में विधि, आचार्य की परीक्षा आदि विषय का बहुत ही सुन्दर तरीके से विशद् वर्णन किया है। 'आहार' - शब्द पर केवलियों के आहार और निहार प्रछन्न होते है। पृथ्वीकायिकादि, वनस्पति, मनुष्य, तिर्यग, स्थळचर आदि यावज्जीव प्राणियों के आहार भोजन संबंधी पूर्णतया विचार किया गया है। कोन सा जीव कितना आहार करता है उसका परिमाण, आहार त्याग का कारण इत्यादि बताया है। भगवान ऋषभदेव ने कन्दाहारी युगलियों को किस प्रकार अन्नाहारी बनाया, उनके आचार विचारों में परिवर्तन किया, इस विपय को लेकर उस जमाने की परिपाटी पर मार्मिक विवेचन किया है। 'इत्थी' (स्त्री) शब्द पर स्त्री के लक्षण, स्त्रीयों के स्वभाव व कृत्यों का वर्णन, स्त्री के संसर्ग में दोप, स्त्रीयों के स्वरूप और शरीर की निंदा, वैराग्य उत्पन्न होने के लिए स्त्री चरित्र का निरीक्षण, स्त्री के साथ विहार, स्वाध्याय, आहार, उच्चार, प्रस्त्रवण, परिष्टापनिका और धर्मकथा आदि करने का भी निषेध इत्यादि २० विषयों पर प्रकाश डाला है। 'उसभ' शब्द पर भगवान ऋपभदेव के पूर्व भव, तीर्थंकर होने का कारण, जनम और जन्मोत्सव, विवाह, संतान, नीति, व्यवस्था, राज्याभिषेक, राज्यसंग्रह, दीक्षाकल्याणक, चीवरधारी होने का काल प्रमाण, भिक्षा का, प्रमाण, उनके आठ भवों का वर्णन, केवल ज्ञान होने के वाद धर्मकथन और मोक्ष तक सब वर्णन दिया हैं। उनके जीवनकाल के समय संसार की क्या स्थिति थी उन्होंने इस संसार को क्या-क्या अमोघ उपदेश देकर आराधना के मार्ग पर लगाया क्योंकि वे इस आरे के आद्य तीर्थंकर थे। इस प्रकार अनेकों विषयों पर दूसरे भाग में विवेचना की गई हैं। इस भाग में जो भी कथाएँ एवं उपकथाएँ आई है, उनका भी शब्द और उनके अर्थ के साथ संकलन किया गया है। ૪૧૪ + ૧૯ભી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy