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________________ में कलमनामा निम्नलिखित है - १. संघ के साथ हमेशा प्रतिक्रमण करना, व्याख्यान देना, पालकी आदि वाहन के बिना मंदिर जाना, सोने चाँदी के जेवर नहीं पहनना, स्थापनाजी का सदा पडिलेहन करना, यंत्र मंत्र आदि नहीं करना। २. व्यर्थ खर्चा नहीं करवाना, घोडे गाडी पर नहीं बैटना। ३. छुरी तलवार आदि शस्त्र नहीं रखना। ४. एकांत में स्त्रीयों से वार्तालाप नहीं करना, नहीं पढाना, उपदेश भी नहीं देना, नपुंसक, वैश्या आदि की कुसंगती नहीं करना। भांग, गांजा, तम्बाकु आदि नहीं पीना, रात में भोजन नहीं करना, कांदा लहसुन आदि खाने वाले यति को नहीं रखना। ६. सचित वनस्पति को नहीं काटना, दांतों की सफाई नहीं करना, कुआ, तलाव आदि के कच्चे जल को नहीं छूना, सदैव उष्ण जल पीना, निष्कारण तेल आदि मर्दन नहीं करना। ७. अधिक नौकर नहीं रखना, हिंसक को तो कभी नहीं रखना। ८. श्री पूज्यश्री को श्री संघ के पास से झगडे से, हठ से, खमासमण एवं द्रव्य आदि नहीं लेना। ९ सब पर सम्यक्त्व की शुद्धि हो वैसा उपदेश देना, शतरंज आदि नहीं खेलना, केश रंगना नहीं, रात में बाहर घुमना नहीं, जूते पहनना नहीं, यतियों से हमेशा ५०० गाथा की आवृत्ति करवाना। यह साधु साध्वियों से संविधान रुप आचार संहिता का कलमनामा है। जिसे श्री गुरुदेव ने बनाया। (यह उस कलमनामें का हिंदी अनुवाद है।) संवत् १९२४ में श्रीमद् का जावरा चातुर्मास अविस्मरणीय रहा है। आपकी प्रवचन शैली से जावरा के नवाव व दीवान प्रभावित हुए। श्री धरणेन्द्रसूरिजी ने भी कलमनामें पर हस्ताक्षर किये।। श्रमणजीवन - कलमनामें की स्वीकृति के बाद उन्हें पूज्य पदवी का वैभव भार स्वरूप मालूम पडने लगा। उन्होने जावरा नगर के खाचरोद दरवाजे के आगे एक नाले के तट के पार जो वटवृक्ष है वहाँ जाकर आपने संवत १९२५ वैशाख शुक्ला १० को श्री पूज्य के आडम्बर शोभा सामग्री का त्याग किया, जिसमें मुख्य पालखी, छत्र, चामर, छडी, गोटा आदि है। अब आपने क्रियोद्धार करके सच्चा साधुत्व ग्रहण किया। यहाँ से आप 'श्री विजयराजेन्द्रसूरि' के नाम से प्रसिद्ध हुए। इसी वर्प के खाचरोद चातुर्मास में आपने त्रिस्तुतिक सिद्धांत को पुनः प्रकाशित किया। कलमनामें की स्वीकृति जैसा ही त्रिस्तुतिक सिद्धांत भी महत्त्वपूर्ण है। क्रियोद्धार के पश्चात् आपने अपने श्रामण्य को विशेष शुद्धि के लिए तपस्या की आग में तपाना प्रारम्भ किया। आपश्री के लिए प्रत्येक सुज्ञ को यह कहना पडता श्रीमद् राजेन्द्रसूरिः ओक महान विभूति की ज्ञान अवं तपः साधना + ४०७
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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