SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री वूटेरायजी की विवेकबुद्धि और सरलवृत्ति कीसी भी हटाग्रह के खिलाफ थी। इसी का परिणाम था कि गुजराँवाला में सन् १८४१ में तीन दिन तक चली ज्ञान चर्चा के बाद शास्त्री लालाकर्मचंद दूगड़ को भी कहना पड़ा कि ऋषि बूटेराय की बात सत्य है। उसके पश्चात् ही उन्होंने श्री संघ को अपने सत्य मार्ग का उपदेश दिया। अहमदाबाद पहुँचे तो नगरशेट हेमाभाई के संपर्क में आए और वहां पर ही उन्होंने सर्वप्रथम संवगी साधु देखे । ई. १८५४ में श्री सिद्धगिरि तीर्थ की यात्रा की व भावनगर में चौमासा किया। अगले ही वर्प, दो अन्य साधुओं (वृद्धिचंद व मूलचंद ) के साथ मुनि श्री मणिविजय (दादा) के पास संवेगी दीक्षा ग्रहण की। बूटेरायजी को मणिविजयजीने अपना शिष्य बनाया और बुद्धिविजय नाम रखा। मुनि मूलचंद और वृद्धिचंद को क्रमशः मुक्तिविजय व वृद्धिविजय नाम देकर, दोनों को बुद्धिविजयजी का शिष्य बनाया । दिल्ली से श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा रामनगर भिजवाई, जो कि वहां पर मूलनायक के रुप में स्थापित की गई । सन् १८६३ में गुजराँवाला में भी चिंतामणि पार्श्वनाथ को मूलनायक विराजमान किया। इसी तरह पपनाखा में भी सुविधिनाथ; किता दीदारसिंह में वासुपूज्य प्रभु किता सोमसिंह में श्री शीलनाथ और पिंडदादनखां में श्री सुमतिनाथजी की प्रतिष्टित कराया । जम्मु में भगवान महावीर स्वामी के मंदिर की प्रतिष्ठा कराई। यह भी ध्यान देने योग्य है कि अहमदावाद में श्री आत्मारामजी महा. के साथ (मुनि शांतिसागर के शास्त्रचर्चा के समय श्री वूटेरायजी स्वयं वहां उपस्थित रहे थे। तत्पश्चात श्री आत्मारामजीने अपने १५ साथी साधुओं सहित श्री बुद्धिविजयजी से संवेगी दीक्षा ग्रहण की। एक ओर जहां मुनि मूलचंद ( मुक्तिविजय) व मुनि वृद्धिचंद ( वृद्धिविजयजी) को श्री वूटेरायजी के दो नेत्र कहा जा सकता है, वहीं श्री आत्मारामजी उनके हृदय थे। कुल मिलाकर श्री बुद्धिविजयजी के ३५ शिष्य थे । मात्र १५ दिन की बीमारी के वाद, ७५ वर्ष की आयु में चैत्रवदि अमास्य, संवत १९३८ (ई. १८८१ ) की रात्री को अहमदावाद में श्री वूटरायजी महा. का स्वर्गवास हो गया। महेन्द्रकुमार मस्त २६३, सेक्टर १०, पंचकूला, हरियाना १३४११३ M. ०९३१६११५६७० ૨૮૪ - ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy