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________________ का परमानंद स्वभाव प्रकट हो जाना स्वाभाविक है। ऐसे में शरीर रोमांच का अनुभव करे और मन-मयूर नाचने लगे तो इसमें आश्चर्य ही क्या है ? संसार में क्षणिक आवेग और अल्पकाल के आनंद के लिये पागलपन देखा जाता है तो श्रुतज्ञान अवगाहन में जो अनन्तगुना, repeat अनंतगुना आनंद भरा है उसे कौन भव्यजीव प्राप्त नहीं करना चाहेगा ? . प.पू. माताजी द्वारा दिये गये ज्ञानामृत का पान हम सभी धर्म-पंथ-संप्रदायसमुदाय ही नहीं अपितु राष्ट्र की भी सीमाओं में वाँधने की संकीर्णता से उपर उटकर करें, बहुमानपूर्वक ज्ञान-गंगा में डुबकी लगायें और परमानंद दशा का किंचित् अनुभव करें। ज्ञानानन्द पीते रहें और आनंद-उत्सव में जीते रहें। सभी आत्मायें अपने क्षयोपशम को वृद्धिंगत करते हुए केवलज्ञान की ज्योति प्रकट करने की भावना भाते रहे इस भावना के साथ अभी अपनी लेखनी को विराम देता हूँ। परिशिष्ट (१) संदर्भ ग्रंथसूचि (१) गणिनी ज्ञानमती गौरव ग्रंथः प्रकाशकः दिगम्बर जैन त्रिलोक शोधसंस्थान (२) चारित्र श्रमणी आर्यिका श्री अभयमती - जीवनयात्रा : लेखिका : आर्यिका चन्दनामती (३) चारित्र चन्द्रिका ः लेखिका : प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती माताजी (४) सम्यगज्ञान - गणिनी श्री ज्ञानमती विरचित साहित्य विशेषांक - अक्टूबर २०१० (५) स्वर्णिम व्यक्तित्व की धनी - गणिजी प्रमुख श्रीज्ञानमती माताजी : लेखिकाः प्रज्ञाथमणी आर्यिका चन्दनामती माताजी (६) गणिजी ज्ञानमती माताजीः ‘एक वेमिसाल व्यक्तित्व' : लेखकः प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जैन (७) सरस्वती की प्रतिमूर्ति (गणिनी ज्ञानमती माताजी) : लेखिकाः आर्यिका आदिमती (८) पट खण्डागम भाग १.६: हिंदी अनुवाद कीः प्र. आर्यिका चन्दनामती माताजी (२) ज्ञानात भाग १-३: प्रस्तावनाः व्र. कु. इन्दु जैन परिशिष्ट (२) प्रथमानुयोग साहित्य (१) मेरी स्मृतियाँ (आत्मकथा) ४४+ ५९६, २००४ A.D. (२) भगवान ऋषभदेव का समवसरण (अंग्रेजीमें अनुवादित) (३) तीर्थंकर ऋषभदेव के दश अवतार (भव) (४) भगवान महावीर कैसे बने (५) नारी आलोक भाग १ और २ (६) एकांकी भाग १ और २ ૨૭૮ + ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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