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________________ ज्वलंत समस्याओं, प्रवर्तमान मतभेदों, विवादास्पद विषयों पर प्रमाणित तथ्यों से निराकरण किया है। तत्पश्चात् 'सम्यगदर्शन ही धर्म का मूल है', 'जैनधर्म एवं भगवान ऋषभदेव', 'गणधर प्रमुख दिगम्बर जैनाचार्य', 'षटखण्डागम की सिद्धान्त चिन्तामणि टीका से सरलता पूर्वक ज्ञान प्राप्त करें', 'भगवान पार्श्वनाथ', 'अभक्ष्य किसे कहते हैं', 'क्या सोमप्रभ एवं श्रेयांस श्री कामदेवबाहुबली के पुत्र थे ?', 'व्यवहार नय के बिना मोक्षप्राप्ति असंभव है', 'क्या जडकर्म भी चेतन का बिगाड कर सकता है, जैसे विषयों पर तर्कपूर्ण और आगम सम्मत विवेचन किया है जिससे लोक में प्रचलित भ्रान्तियों एवं आगम-विरुद्ध दुष्प्रचार से सरल जीव मिथ्यात्व के पोषण से बच सके। तदनंतर 'मोह का नाश कैसे हो', 'पुण्णफला अरहंता', 'चारित्र से निर्वाण की प्राप्ति', 'व्यवहार रत्नत्रय उपादेय है या नहीं', 'यहाँ से मरकर सम्यग्दृष्टि मनुष्य विदेह में जन्म क्यों नहीं लेंगे?', 'क्या जीव रक्षा के भाव मिथ्यात्व है ?' ऐसे महत्त्वपूर्ण प्रश्नो का आगमानुकूल स्पष्टीकरण किया है। _ 'महिलाओं के कर्तव्य', 'चौदह धारा', 'सुमेरु पर्वत', 'विपुलाचल पर्वत पर प्रथम दिव्य ध्वनि खिरी', 'संसारी जीव', 'तीर्थों के विकास की आवश्यकता', 'चौबीस तीर्थंकरों को सोलह जन्मभूमियों की नामावली' जैसे ज्ञान सभर लेखों का इस ग्रंथ में समावेश है। ___श्री माघनन्दि योगीन्द्र विरचित चार अध्यायों में सूत्र रूप 'शास्त्रसार समुच्चय' एवं 'ध्यान सूत्राणि' के ३७८ सूत्र संकलित हैं। ___ अंत में ज्ञानामृत के इस तीसरे भाग की स्वतंत्र काव्यरूप प्रशस्ति लिखी गई है जो प.पू. माताजी की काव्यप्रतिभा का सुंदर उदाहरण है। समय एवं स्थानाभाव के कारण अन्य कई महत्त्वपूर्ण कृतियों के नाम निर्देश परिशिष्टो में कर दिये गये हैं। उपसंहारः वीर निर्वाण पश्चात् के २५०० वर्ष के जिनशासन ही नहीं अन्य धर्म मार्गो के उपलब्ध इतिहास में आध्यात्मिक क्षेत्र के साहित्य में योगदान देने वाली नारीरत्नों की सूचि बनाई जाये तो प.पू. ज्ञानमती माताजी का नाम सहज ही शिखरस्थ रहेगा। उनका नाम 'लिम्का बुक ऑफ रिकार्डस' एवं 'गिनेस बुक ऑफ रिफाईस' में निर्विवाद रूप से समाविष्ट हो सकता है। प.पू. माताजी के साहित्य-सर्जन के प्रारंभीकरण के पश्चात् इस काल में पू. आर्यिका श्री विशुद्धमती माताजी, श्री सुपार्श्वमती माताजी, श्री जिनमती माताजी, श्री आदिमती माताजी, प्रज्ञाश्रमणी, श्री चन्दनामती माताजी आदि अनेक जैन साध्वियों ने संस्कृत-प्राकृत के प्राचीन गूढ ग्रंथो की टीका-अनुवाद एवं अन्य साहित्यरचना के क्षेत्र में अपने कदम बढाये हैं और उनकी कृतियों से भी रूचिवान जैन समाज साहित्य-साम्राज्ञी प. पू. ज्ञानमती माताजी + २७५
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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