SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वाचनीय प्रकरण रटे और उनका पुनरावर्तन करते रहे। इनकी प्रतियां उपलब्ध नहीं होने के कारण कई बार हाथ से लिखना पडता था। जैन आचार्य हेमचन्द्र के काव्यानुशासन का भी अध्ययन किया। जैन व जैनेतर अनेक ग्रंथ पढे और धीरे-धीरे स्वयं ने लिखना शुरू कर दिया तथा 'शिक्षा षण्णवति', 'कथा प्रदीप', 'जैन सिद्धान्त दीपिका', 'मनोनुशासनम्' भिक्षु न्याय कर्णिका जैसे कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे। जैन सिद्धान्त दीपिका में सूत्र रूप में जैन धर्म के आधारभूत तत्त्वों को संक्षेप में प्रस्तुत किये गए हैं। इसके लेखन से आचार्य भिक्षु के अहिंसा - सिद्धान्त को दार्शनिक रुप मिल गया। मनोनुशासनम् - आध्यात्मिक योग विषय का जैन साधना पद्धति का प्रतिनिधि ग्रंथ है। इसके द्वारा अपनी साधना का नवनीत जनता को सुलभ कराया। पंच सूत्रम् - जैसे अनुशासन ग्रंथों का निर्माण किया। संस्कृत भाषा को पल्लवित एवं पुष्पित करने के लिए आपने अपने साधु-साध्वियों को भी संस्कृत भाषा का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया। उनका ज्ञान बढाने के लिए हस्तलिखित मासिक पत्रिका 'जैन ज्योति' एवं 'प्रयास' निकाली गई। आगम् सम्पादन के कार्य के संदर्भ में एपणा और अन्वेषणा पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू कर संस्कृत विकास को विस्तृत आयाम दिया। भाषण, निवन्ध, श्लोक एवं काव्यपाट, कहानियां, निबंध, समस्या पूर्ति तथा उच्चारण आदि प्रतियोगिता के माध्यम से साधुओं के ज्ञान को पुष्ट किया। संस्कृत में वक्तव्य देने के लिए प्रेरित किया। आचार्य महाप्रज्ञजी ने एक दिन में १००, राकेश मुनिजी ने १००० तथा मुनि गुलावचन्दजीने १५०० श्लोकों की रचना कर डाली। संस्कृतज्ञ मुनियों से आप संस्कृत में ही वार्तालाप करते थे। ___आगमों के अध्ययन के लिए प्राकृत भाषा का ज्ञान आवश्यक था। आचार्य बनते ही आपने जैन आगमों का स्वयं एवं साधु-साध्वियों से भी पारायण कराने का निश्चय किया। आपने स्वयं तो आचार्य हेमचन्द्र का प्राकृत व्याकरण कण्टस्थ कर रखा था, अपने शिष्यों को भी कण्ठस्थ करने के लिए प्रेरित किया। आपकी प्रेरणा एवं मार्गदर्शन पाकर ही मुनिश्री नथमलजी (आचार्य महाप्रज्ञ)ने पण्डित रघुनंदन शर्मा के सहयोग से प्राकृत व्याकरण की बृहत् प्रक्रिया तैयार की, जिसका नाम 'तुलसी मंजरी' रखा गया। आगम सूत्रों की भाषा भी प्राकृत होने से उनके सम्पादन कार्य में महनीय सहयोग रहा। आपका हिंदी साहित्य भी बड़ा समृद्ध एवं सशक्त था। साहित्य की हर विधाओं में आपने साहित्य की रचना की तथा व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की हर समस्याओं को प्रतिबिम्बित किया। जीवन के महानतम से लेकर लघुत्तम को छुआ। आपने जो कुछ देखा, सुना, संवेदना से अनुभव किया उसे अनसुना नहीं किया, बल्कि अपनी लेखनी में उतार कर प्रचुर साहित्य का निर्माण किया। आध्यात्मिक विषयों के साथ-साथ समसामायिक परिस्थितियां समस्याओं एवं अनेको विषयों पर साहित्य ૧૯૬ + ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષરઆરાધકો.
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy