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________________ न ही कोई राजनेता। मुझे ऐसे मानपत्र देने से क्या लाभ ? यदि मुझे कुछ देना ही चाहते हो, तो सच्चा मानपत्र दो। में पिछले कुछ दिनों से सुन रहा हूँ कि नगर में अशांत वातावरण है और हरेक के मन में फिरकंदाराना फिसाद का डर है। जब शहर में ऐसे विस्फोटक हालात हों, तो ऐसे मानपत्र भी कुछ अप्रासंगिक से लगने लगते हैं।' समाजोत्थान समाजसेवा व संगठन भारत की सामाजिक व सांस्कृतिक पृष्टभूमि को सुदृढता प्रदान करने हेतु भागीरथ-प्रयत्न करने वाले, आचार्य विजयवल्लभ ने समाज के मध्यम वर्ग की ओर विशेष ध्यान दिया। ईस्वी सन १८९१ में अमृतसर मंदिर की प्रतिष्टा के अवसर पर जब उनके गुरु श्री आत्मारामजी महाराज की प्रेरणा से समाज सुधार व फिजूलखर्ची रोकने के कुछ नियम निर्धारित हुए, तव विजयवल्लभ ने यह सब देखा था। उसके बाद तो समाज सुधार का एक सिलसिला ही चल पड़ा। अनेक निरर्थक रुढियों, रस्मों-रिवाजों को त्यागा गया, या उनमें सुधार किया गया। पंजाब जैन महासभा तथा भारतीय जैन कोनफ्रेंस के सशक्त प्लेटफार्म से समाज सुधार व मध्यम वर्ग उत्कर्ष के अनेक प्रस्ताव पास करवाये गए। पचहत्तर वर्ष की अवस्था में, अक ऑप्रेशन के बाद उन्होंने व्याख्यान में कहा था - ___ 'संसारका त्याग कर, ये वेश पहन कर, भगवान महावीर के समान हमें अपने जीवन के पल पल का हिसाब देना है। आत्मशांति व आत्मशुद्धि तो मिलते-मिलते ही मिलेगी, पर समाज, धर्म व देश के उत्थान में, इस जीवन में जो कुछ देन दी जा सकती है, वह हम कैसे भूल सकते हैं।' आचार्यश्री ने संगटन, सहिष्णुता और सहयोग पर हमेशा वल दिया। संवत १९६५ (सन् १९०८) जेठ मास की कडकती धूप में पालनपुर के संघ का आपसी वैमनस्य देख कर भोयणी तीर्थ जाने का निश्चय कर लिया। पूछने पर बताया - 'मैं यहां रोटियों के लिए नहीं ठहरा हूँ, मुझे तो प्रेम की भिक्षा चाहिए।' फलस्वरूप श्रीसंघ के आपसी मतभेद दूर कराये। इसी तरह सादडी में साँवत्सरिक प्रतिक्रमण तब तक शुरू नहीं किया, जब तक वहां के दो रूटे हुआ भाइयों ने परस्पर क्षमा . याचना न की और गले नहीं मिले। विषमता और असमानता को दूर करने के निश्चय और ध्येय ने ही बडौत के हरिजनों को कुएँ से पानी लेने का अधिकार दिलाया। लक्ष्मीपतियों से उन्होंने कहा - ....... भिक्षु हूँ और सदा रहूँगा। मैं पदवी से अधिक कीमती वस्तु आपसे माँग रहा हूँ। आप लोग एकता में रहो। शिक्षण संस्थाओं के लिए अपनी तिजोरियों ૬૮ + ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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