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________________ आचार्यश्री विजयवल्लभसूरि __व्यक्तित्व-कवि-काव्य . महेन्द्रकुमार मस्त શ્રી મહેન્દ્રકુમારજી મસ્ત પંજાબના રહેવાસી છે. પોતાના લેખો અને પુસ્તકો દ્વારા અનન્ય સાહિત્યસેવા કરી રહ્યા છે. પંજાબ કેસરી પ.પૂ. આ. શ્રી વિજયવલ્લભસૂરિજીનો તેઓને ખૂબ નિકટનો પરિચય હતો. પૂ. વલ્લભસૂરિજીની કાવ્યસૃષ્ટિ અંગેનો આ લેખ એક અજાણ પ્રદેશ પર પ્રકાશ પાથરનાર છે. –સં.) भारतीय संस्कृति की ओक विशिष्ट परम्परा के आचार्य श्री विजयवल्लभसूरि, - वीसवीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध धर्मगुरु, आध्यात्मिक नेता व तत्त्ववेता हो चुके हैं। आदर्श गुरु, समाज सुधारक, शिक्षा प्रचारक, राष्ट्रीय नेता तथा प्रकाण्ड विद्वान के रूप में आप युगों युगों तक जाने जाते रहेंगे। श्री दीपचन्द-इच्छाबाई के घर सन् १८७० की भाईदूज के दिन बडौदा में जन्मे विजयवल्लभने १७ वर्ष की आयु में अपने आराध्य गुरु श्री विजयानंदसूरि (आत्माराम) से साधु दीक्षा ली। आचार्य विजयानंदसूरि जो कि स्वामी दयानंद व श्री रामकृष्ण परमहंस के समकालीन तथा उन्नीसवीं शताब्दी के “भारतीय सुधार' के प्रणेता गुरुओं व नेताओं में गिने जाते थे, अपने युग के विद्वान मनीषी, लेखक, सत्य-ग्वेषक और भारतीय वाङ्मय के ऐसे प्रकाण्ड पंडित थे कि जिन्हें सन् १८९३ में चिकागो में हुई सर्वधर्म परिषद की सलाहकार परिषद में पधारने का विधिवत् निमंत्रण मिला था। आचार्य विजयवल्लभने अपने इन्हीं गुरुदेव की निर्दिष्ट शैली पर निष्काम कर्मयोग का आजीवन ब्रह्मचारी रहकर अनवरत अनुष्ठान करते हुओ युगान्तर उत्पन्न किया और अपने युक्तिपूर्ण शास्त्राधारित मनमोहक अमृतमय उपदेशों द्वारा समाज तथा देश को जीवन व जागृति दी। देश-काल के पूर्ण ज्ञाता तथा महान समाज सुधारक आचार्य विजयवल्लभने जैन धर्म के रूप में भारतीय संस्कृति एवं भारतीय सभ्यता को सदा के लिए अमर बनाओ रखने के सतत प्रयत्न किये। प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता पद्मश्री जिनविजयजी व महान साहित्यकार पद्मश्री पं. सुखलालजी को विचारों, चिंतन व जीवन ध्येय की इतनी उच्च भूमिका तक लाने का श्रेय आपको ही है। ૪ - ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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