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________________ प्रस्तावना. श्री जैन श्वेतांबर डीरेक्टरीने अंगे लगभग बे वर्षथी हाथ धरेला कार्यना प्रथम फळ तरीके आ पुस्तक श्रीसंघ समक्ष रजु करवामां आवे छे. डीरेक्टरीनुं काम हजु सुधी संपूर्ण थयेलुं नहीं होवाथी आ मंदिरावळी अपूर्ण रहे छे अने थोडा वखत पछी नार द्वितीय भागमां पूर्ण करवामां आवशे. आ पुस्तक पांचमी जैन श्वेतांबर कोनफरन्स पहेंलां प्रगट करवानी इच्छाने ल पावनुं कार्य घणुंज उतावळथी करवुं पडयुं छे, एटले आ पुस्तकमां हकीकत आपवानी जे रूढि ग्रहण करेली छे तेमां खामी रही जवानो संभव छे. तेथी करीने ते संबंधमां सूचनाओ घणीज आवकार दायक थई पडशे अने ते उपर हवे पछीना पुस्तकोमां अमल करवानुं बनी शकशे. आ पुस्तकना दोषो लक्षमां न लेतां तेने विशेष उपयोगी करवा संबंधी सूचनाओ आपवा दरेक मुनिमहाराज तथा साक्षर बंधुओने विनंति छे. हिंदुस्तानना जदा जुदा भागोमां आवेलां आपणां मंदिरोने लगती हकीकत एक स्थळे एकत्र करवानो आ प्रथम प्रयास छे एटले लागता वळगताओने ते पूर्ण कराववा भलामण करवामां आवे छे. आ पुस्तक थोडा वखतमां ताकीदे छपावी प्रसिद्ध करवानुं नक्की थएलुं होवाथी अंदर छापवामां आवेला जिल्लाओ, तेना तालुकाओ तथा तेनी अंदरना गामोनो योग्य क्रम सचवायो नहीं होय, अने आडाअवळां छपाणां हशे तेमज प्रुफ सुधारवामां पण मूल रही हशे माटे सुज्ञ बंधुओनी क्षमा याचवामां आवे छे. चंपागल्ली, मुंबई. ता. १४-२-१९०७. आसीस्टंट सेक्रेटरी. श्री जैन श्वेतांबर कोन्फरन्स.
SR No.023306
Book TitleJain Shwetambar Mandiravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1907
Total Pages272
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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