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________________ समरसिंह अतः इस मन्दिर की व्यवस्थाकारिणी कमेटी के सभासद भी यह चुन लिये गये । सलक्षणने कमेटी के सभासद होकर इस कार्य को तन मन धन लगा कर सुचारु रूप से किया । जिनालयों के प्रबंध करने में सलक्षण को विशेष अभिरुचि थी अत: सोने में सुगन्ध वाली कहावत चरितार्थ हो गई । ५८ , 1 सौजन्य से शोभित सलक्षण के एक पुत्ररत्न था जिसका नाम 'आजड़ था । यह बाल्यवय से ही प्रखर बुद्धिवाला था तथा समयोचित शिक्षा ग्रहण कर वह पुरुषोचित सर्व कलाओं में कुशल था । श्री पार्श्वप्रभु के मन्दिर में नित्य जाकर वह श्रद्धा सहित भक्ति करने के अतिरिक्त अपने गुरु महाराज का भी परम आज्ञाकारी धर्मानुरागी श्रावक था । अपनी वंश की परम्परागत उच्च पदवी पर आरूढ़ रहने के लिये वह सर्वथा योग्य था । संघ में तो वह अग्रगण्य था ही पर राजा भी इन में पूरा विश्वास रखता था तथा आवश्यक्ता होने पर उत्तरदायित्वपूर्ण कार्यों में इनकी सहायता एवं परामर्श अवश्य लिया करता था । सलक्षण को पूर्ण विश्वास हो गया कि आजड़ अवश्य जिन शासन की सेवा करने के योग्य है । सलक्षणने इस नगर में रह कर बहुत द्रव्य उपार्जन किया तथा देव, गुरु, धर्म, स्वधर्मी भाइयों और सार्वजनिक कार्यों के लिये उदारतापूर्वक द्रव्य व्यय कर अर्जित लक्ष्मी का यथार्थ सदुपयोग किया । अन्त में अपने गुरुवर्य आचार्य श्री कक्कसूरि के चरणों में धर्माराधन करते हुए जरा अवस्था में अनशनपूर्वक स्वर्गधाम को गमन किया ।
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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