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________________ समरसिंह। इतिहास प्रसिद्ध है । इन्होंने अपने जीवन को धार्मिक कार्य करते हुए बिताया । आपने भिन्न भिन्न जगहोंपर कई मन्दिर बनवाए जिनकी संख्या ८४ है । पेथड़शाहने भी इस तीर्थ की यात्रा करने के निमित्त एक बड़ा संघ निकाला जिसमें यात्री बहुत बड़ी संख्या में सम्मिलित हुए थे। संघ निकालकर पेथड़शाहने विपुल द्रव्य व्यय किया तथा इसके अतिरिक्त शजय तीर्थ पर स्मारकरूप 'कोटाकोटि ' नामक जिनेन्द्र मण्डप बनवाया जिसमें वि. सं. १३२० में श्री शांतिनाथ भगवान की मूर्ति स्थापित करवाई। पेथड़शाहने इस स्तुत्य और अनुकरणीय कार्य को कर अक्षय पुण्य उपार्जन किया। वि. सं. १३४२ में गढ़ सिवाना के महामंत्री प्रोसवाल कुलभूषण तथा श्रेष्टिगोत्र-शिरोमणि नेतसीने भी इस तीर्थ की यात्रा के निमित्त संघ निकलवाया । आप बड़े वीर और दानी थे। आप का नाम अबतक ऐतिहासिक साहित्य में अप्रकट था। जिस प्रकार आप धनी थे उसी कोटिके आप धर्मनिष्ठ भी थे। आपने जो संघ निकाला उसमें यात्री बड़ी संख्या में सम्मिलित हुए इसका प्रमाण इस बात से मिलता है कि उस संघ में ३००० पोठ (बैल ) तथा २५०० गाडियाँ थीं । नेतसीने श्री युगादीश्वर भगवान की पूजा हीरे, पन्ने और मुक्ताफलों के श्रेष्ट हार पहनाकर की । धन्य है ऐसे नरवीरों को जो हमारी मरुभूमि में जन्म १ उपकेश गच्छ पट्टावली तथा वंशावली देखिये
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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