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________________ समरा रास. २ . एकादशी भाषा. संघु रयणायरतीरि गहगहए गुहिरगंभीरगुणि । प्राविउ दीवनरिंदु सामुहउ ए संघपतिसबदु सुणि ॥ १॥ हरषिउ हरपालु चीति पहुतउ ए संघु मोलविकरे । पमणई दीवह नारि संघह ए जोपण ऊतावली ए । माउला वाहिन वाहि वेगुलइ ए चलावि प्रिय बेडुली ए ॥२॥ किसउ सुपुत्रपुरिषु जोइउ ए नयणुलो सफल करउ । निक्छणा नेत्रि करेसु ऊतारिसू ए कपूरि ऊआरणा ए । बेडीय बेडीय जोडि बलियऊ ए कीधउं बंधियारो ॥३॥ लेउ देवालउमाहि बइठउ ए संघपति संघसहिउ । लहरि लागई भागासि प्रवहणु ए जाइ विमान जिम । बलवटनाटक जोइ नवरंग ए रास लउडारस ए ॥ ४॥ . निरुपमु होइ प्रवेसु दीसई ए रुवडला धवलहर । विहां अच्छइ कुमरविहारु रुपडऊ ए रुअडुला जिणभुवण । तीर्थकर तीह वंदेवि वंदिऊ ए सयंभू आदिजिणु । दीठउ वेणिवच्छराजमंदिरु ए मेदनीउरि धरिउ । अपूरवु पेषिउ संघु उत्तारिऊ ए पहली तडि समुदला ए ॥ ५ ॥ द्वादशी भाषा प्रजाहरवरतीरथिहि पणमिउ पासजिणिंदो। पूज प्रभावन तहिं करहिं । अघिउ ए अजिउ ए अजिउ सफल सुछंदो ॥१॥
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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