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________________ ११८ समरसिंह मारवाड़े में सीमंधरस्वामी के जिनालय में है। ( बुद्धि० भाग २ रा ले० नं० १०७६) वि. सं. १४०१ में प्रतिष्ठित शांतिजिन विंब बालोतरा (मारवाड़) में शीतलनाथजी के मन्दिर में है (देखो-पूरणचन्द्रजी नाहर के लेखसंग्रह के लेख नं० ७२९) वि. सं. १४०५ में प्रतिष्ठित ऋषभजिन बिंब जयपुर के बेपारी के पास है ( देखोः- पूरणन्द्रजी नाहर के लेख संग्रहके लेख ० नं० ४००) देवगुप्त सूरि प्रस्तुत प्राचार्य कक्कसूरि के शिष्य देवगुप्तसूरिद्वारा वि. सं. १४१४, १४२२, १४३२, १४३९, १४५२, १४६८ और १४७१ में प्रतिष्ठित जिन-मूर्तियों देखने में आती हैं । इन में से सं. १४१४ का लेख ऊपर दिखाया गया है । सं. १४३२ में प्रतिष्ठित भादिनाथ भगवान की मूर्ति हमारे चरितनायक के पुत्र दूंगरसिंह की भार्या दुलहदेवीने साधु समरसिंह के श्रेय के अर्थ बनवाई थी । ( बुद्धि० भाग २ ले० नं. ६३५) वि. सं. १४५२ में प्रतिष्ठित संघद्वारा कराई हुई उपर्युक्त आचार्य ककप्रि की पाषाणमयी मूर्ति पाटण में पंचासरा पार्श्वनाथस्वामी के मन्दिर के एक गवाक्ष में है । ( जिन वि. भा० २ रा ले० नं. ५२६) वि. सं. १४६८ में प्रतिष्ठित प्रादिनाथ प्रमुख चतुर्विशति
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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