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________________ ऐतिहासिक प्रमाण. २२५ सिद्धमूरि वि. सं. १३७१ में शत्रुंजय के मूलनायक आदीश्वर भगवान् की मूर्ति की प्रतिष्टा करनेवाले उपकेशगच्छ के आचार्य सिद्धसूरि से वि. सं. १३५६ में तथा वि. सं. १३७३ में प्रतिष्ठित करने में कोई कमी नहीं रखी । वह इसी कार्य में सदैव तत्पर रहता था । गुरुकृपा से यह ऊँचे ऊँचे शिखरवाले २५ देवालय बनवाने में समर्थ हुआ था । इस के अतिरिक्त सिद्धगिरि का संघ भी निकाला जिस से इसने स्वयं और भी कई जगहों की यात्रा की तथा दूसरे लोगों को भी यात्रा करवाकर संघपति की वंश परम्परा से श्राती हुई पदवी को प्राप्त किया । तीसरे पुत्रका नाम ड्रॅगरशाह था । जिस की चतुराई से दिल्लीश्वर बादशाह इस से परमंप्रसन्न था और बादशाहपर इसका प्रभाव भी कम नहीं था । यहीं कारण था कि वह कई धर्म कार्य निर्विघ्नतया करने में समर्थ हुआ था । चतुर्थ पुत्र का नाम सालिगशाह था । इन की वीरता विश्वविख्यात थी अतः आप ' शूरशिरोमणि' नामक विरुद से लोक प्रसिद्ध थे । आप लोक मान्य तो थे ही । नवीन मन्दिर बनवाने की अपेक्षा आपने जीर्णोद्धार के कार्य को करना ही अधिक उचित और उपयोगी समझा अतः आपने यही कार्य अधिकांश में किया । पंचम पुत्रका नाम स्वर्णपाल था । इन का यश प्रस्तारित और उद्योग प्रशंसनीय था । इन्होंने ४२ जिनालय बना श्रीशत्रुंजय का संघ निकाल तीर्थ यात्रा का लाभ उपार्जन कर विश्वभर में ख्याति प्राप्त की । छट्ठे पुत्र का नाम सज्जनसिंह था । जो महान् प्रतापी और जिनशासन की अतुल प्रभावना करनेवाले थे । इन्होंने वि० सं० १४२४ में पुनीत तीर्थ १५
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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