SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऐतिहासिक प्रमाण । २१३ संवत् १४१४ वर्षे वैशाख शुदी १० गुरौ संघपति देसल - सूत सा० समरासमर श्रीयुग्मं सा० सालिग सा० सज्जनसिंहाभ्यां कारितं प्रतिष्टितं श्रीकक सूरिशिष्यैः श्रीदेवगुप्तसूरिभिः || शुभं भवतुः शिलालेखों की वंशावली ही को अधिक विश्वसनीय इस लिये मानना चाहियेक्योंकि नाभिनंदनोद्धार प्रबंध में दी हुई वंशावली जो समरसिंह के समकालीन आचार्यद्वारा लिखी गई है शिलालेख की वंशावली से ठीक मिलती है । 66 प्रशस्ति के अष्टम पद्य से स्पष्ट होता है कि देसलशाह के प्रथम पुत्र सहज “ कर्पूरंधारा ” विरुद से विभूषित थे और इस के आगे के पथ से यह भासित होता है कि सहज का पुत्र सांरंगशाह शुद्ध अंतःकरण वाला सूर्य की तरह विमल गुणों से प्रतापशाली था । इन के लिये “ सुवर्णधारा "3 विरुद जीवन पर्यंत शोभा पा रहा था । दसवें पद्य से ज्ञात होता है कि देसलशाह के दूसरे पुत्ररत्न साहा अपनी प्रखर बुद्धि चातुर्य के लिये सदैव बादशाहों से सम्मानित होते थे । जिन्होंने देवगिरि ( दोलताबाद) में पर्वत के शिखर सदृश सुवर्ण के कलश और ध्वजादंड संयुक्त जिनेश्वर भगवान् का भीमकाय मन्दिर बनवा कर धर्म के बीज का वपन किया था । समरसिंह के प्रबंध से मालूम होता है कि सहजाशाहने देवगिरि को ही अपनी निवास भूमि बनाली थी । इस के अतिरिक्त उन्होंने चौबीसों भगवानों के मन्दिर और गुरुवर्य और सच्चिका देवी के लिये भी चैत्य बना लिये थे जिस का उल्लेख हम मूलग्रंथ में पहले ही यथास्थान कर चुके हैं । प्रशस्ति के ११-१२ वें श्लोक में हमारे चरितनायक साहसी समरसिंह का संक्षिप्त परिचय दिया गया है कि संघपति देसलशाह के तीसरे पुत्र समरसिंह थे । जिन की धवलकीर्त्ति विश्व में दिवानाथ की रश्मियों की नांई चहुँ और प्रस्तारित थी । धर्मवीर एवं दानेश्वरी समरसिंहने अपनी उत्साहपूर्ण कार्य कुशलता ओर बुद्धिबल से उस विकट समय में पुनीत तीर्थाधिराज श्रीशत्रुञ्जय गिरि का उद्धार करा के भरत और सगर जैसे प्रतापी चक्रवर्तियों से भी
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy