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________________ No9009005) 8 छटा अध्याय । ७७७७७७el प्रतिष्टा। यह सुनकर हमारे चरितनायक अपने पिताश्री सहित आचार्य श्री सिद्धसूरिजी को वन्दन करने के लिये HOPER पोषधशाला में पधारे । विधिपूर्वक वंदना करने के MAIN पश्चात् आपने कहा कि आचार्यवर ! आपने अपने उपदेशरूपी जल से हमारी आशारूपी जतिका का सिंचन किया वह अंकुरित तो पहले ही हो गई थी अब वह लतिका भाप के उपदेशामृत द्वारा निरन्तर सिंचन द्वारा खूब बढ़ी जिस के प्रताप से बिंब को हम मूल स्थान में रखवाने को सफल हुए हैं। अब आप से यही विनम्र निवेदन है कि प्रतिष्टा रूपी प्रसाद का दान कर हमारे मनोरथों को शीघ्र पूर्ण करिये । मुख्य मन्दिर के शिखर का उद्धार छेदक ( भंग ) से कलश पर्यंत परिपूर्ण करवालिया गया है । इस के अतिरिक्त दक्षिण दिशा में अष्टापद के आकार का चौबीस जिनेश्वरों युक्त नया चैत्य भी करवाया गया है। पूर्वजों के उद्धार के स्मरणार्थ श्रेष्टिवर्य त्रिभुवन सिंहने
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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