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________________ ५ यह महान् प्रतिष्टा गुरु- चक्रवर्ती उपकेशगच्छाचार्य श्री सिद्धसूरि की अध्यक्षता में हुई थी और इसका सब वर्णन इनके सुयोग्य लब्धप्रतिष्ठ शिष्यरत्न ककसूरिने अपनी नजरों से देखा हुआ ' नाभिनंदनोद्धार प्रबंध ' नामक ग्रंथ में लिखा है जो प्रतिष्ठा के निकट समय में अर्थात् वि. सं. १३८३ में ग्रथित हुआ था। अतः साहसी समरसिंह की जीवनी पूर्णरूप से ऐतिहासिक होने में किसी तरह के संदेह को स्थान नहीं मिल सकता । इसके अतिरिक्त निवृति गच्छाचार्य श्री आम्रदेवसूरि भी इस प्रतिष्ठा के समय साधु समुदाय में सम्मिलित थे । इन्होंने प्रतिष्ठा के पश्चात् तुरन्त ही अर्थात् वि. सं. १३७१ में प्रस्तुत प्रतिष्ठा का संक्षिप्त विवरण ' समरा रास ' नामक गुर्जर भाषा में लिखा जो साधु समरसिंह की जीवनी पर और भी विशेष प्रकाश star है । ( उपर्युक्त दोनों ऐतिहासिक प्रन्थों तथा उपकेशगच्छ चरित्र जो वि. सं. १३८३ में प्रस्तुत उपकेशगच्छाचार्य कक्कसूरि का बनाया हुआ है, एवं उपकेशगच्छ पट्टावली और कई शिलालेखों की सहायता से यह समरसिंह ' नामक ग्रंथ हिन्दी भाषा में संकलित किया गया है । चूंकि समरसिंह का घराना शुरु से ही उपकेश गच्छोपासक है इस कारण से समरसिंह की जीवनी के -साथ उपकेशगच्छ का परिचय भी संक्षिप्ततया संकलित कर दिया गया है । उपकेशगच्छाचार्यों के अतिरिक्त जो अन्यान्य गच्छों
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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