SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११३ सबकेशगच्छ-परिचय। चेतावनी दी कि अब आप लोगों को ककसूरिजी की तरह सिंहरूप शीघ्र ही धारण कर लेना चाहिये । ___ आचार्य ककरिके पट्ट पर देवगुप्तसूरि हुए। आप पाटण नगर के श्रेष्ठिगोत्रीय देशलशाह के होनहार सुपुत्र थे जिहोंने कई लक्ष द्रव्य को त्याग कर दीक्षा स्वीकार की थी। संसार पक्षमें उनके एक धर्म बहन श्रीबाई थी जिसने अपने भाग के एक लक्ष रुपये अपने धर्म भाई ( देवगुप्त सूरि ) को अर्पित कर दिये थे। भाचार्यश्रीने कहा हम त्यागियों को इस द्रव्य से क्या सरोकार है ? अच्छा हो यदि यह द्रव्य किसी धार्मिक शुभ कृत्व में उपयोग भावे । तदनुसार किसी देव मन्दिरमें उस द्रव्यसे एक विशाल अद्भुत रंगमएडप तैयार करवाया गया। समयान्तर में आप विहार करते हुए मरुकोट नगर की ओर पधारे । आपकी सेवामें एक संघ भी साथ था जिसे आपने कई संकटों से उबारा । मारोठकोट के राजा सिंहबलीने जो जइप वंश का था, सूरिजी को अपने नगर में महामहोत्सवपूर्वक स्वागत कर बुलाया । उस राजा के एक बहन थी जिसका विवाह ढक राजा से हुआ वह भी सूरिजीसे योगशास्त्र सुनती थी, जिस के परिणाम स्वरूप वह श्राविका बन गई और उसने भी जैनधर्म का खुब प्रचार किया। वि० सं० १२३६ में प्राचार्यश्रीने पूल्हकूप नगर में स्थित श्री नेमी जिनालय में ध्वजा और दंड की प्रतिष्ठा
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy