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________________ उमरसिंह अपराव बन पड़ा कि ये प्राचार्यमण मेरी नगरी को सहसा छोड़ रहे हैं । वह लौट कर सीधा हेमचन्द्राचार्य के पास उपस्थित हुमा और सब हाल कह सुनाया । हेमचन्द्राचार्यने भी इस घटना से अपरिचित होना प्रकट किया। हेमचन्द्राचार्य यह वर्णन सुन कर अवाक रह गये परन्तु जाँच करने पर ऐसा मालूम हुआ कि यह किसी साधु की कारस्तानी है । अतः आप के एक एक साधु को अपने पास बुला कर इस का रहस्य पूछा तो अन्त में गुणचन्द्रने सब रहस्य प्रकट किया जिस पर हेमचन्द्राचार्यने अपने शिष्य को बड़ा भारी उपालम्भ दिया । परन्तु अब अधिक पश्चाताप करना व्यर्थ था। हेमचन्द्राचार्य कुमारपाल सहित प्राचार्य श्री ककसरि के समक्ष उपस्थित हो द्वादश भावृत से वन्दना की । इन के आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। मापने गद्गद् स्वर से कहा क्षमसागर ! आप मेरे अपराध को क्षमा करिये । गुर्जरेश्वर कुमारपालने कहा कि-हे पूज्यप्रवर ! ‘आप अपना बिरुद विचार मुझ पर अनुप्रह कर आप सर्व प्राचार्यों सहित एक बार नगर में अवश्य पधारिये । क्योंकि १ धीहेमसूरयः सधोत्याकुलाः कुलदीपकाः। दर्शनस्व साल्वनायञ्जग्मुर्भूप समन्विता ॥ ४५८ ॥ पायें श्रीककसूरीणां दर्शन मिलितं तदा । श्रीहेमसूरयः साधुलोचना गदगद खराः ॥ ४ ॥ पंदनं द्वादशावर्त सासरि पादाब्जयोः । दत्वा लगित्वा स नृपास्तश्थु किपरायणाः ॥ ४६० ॥
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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